Sunday, 28 October 2018

सर की चुनर



मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ 

कह दूँ था जो तेरे दर पर, सब क़िस्सा अल्फ़ाज़ करूँ 

मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ ||1||


बड़ी लगन थी, बड़ी ललक थी, कैसे मैं इज़हार करूँ 

चेहरा था वो जैसे, ऐसे बिन देखे ही प्यार करूँ

मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ ||2|| 


बात करूँ क्या उस लम्हें की, चटक सी जब सर चुनर थी 

माथे  था तिलक अनोख़ा, भोली सी एक सूरत थी 

मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ ||3||


मैंने खुद को रोक लिया, पर क़लम पे क्या पाबंदी है 

दिल का हाल सुनाऊँ कैसे, उसकी क्या रज़ामंदी है 

मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ||4||  


                                                ---राहुल मिश्रा 


सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...