Tuesday, 1 January 2019

दिल की पुकार

मेरे राग-राग में  बसता है, तू कड़-कड़ में रहता है
सुना है चंद लोगों से, हवा में रह के बेहता है

  
हवायेँ रोज़ चलती हैं, मुझसे होकर गुजरती है
किसी दिन उन हवाओं में, बस दो पल ही बाँहों में
तूँ भेज दे उसको, नाम है जिसका मेरी हर दुवाओँ में 


तूँ भी थक गया होगा, मेरी एक ही ख़्वाहिश से
हर रोज उठती, मेरी एक ही फ़रमाइश से 


जब तक साँस देगा तू, मुझे अल्फ़ाज़ देगा तू
मुक़म्मल हर क़लम, उसी का नाम लिखेगी
तेरे चरणों में उसे पाने का अरमान लिखेगी
अगर तू बाँध ना पाया, वो डोरी सात जन्मों की
तरस खाकर सही मुझे, बस यही अंजाम दे देना
अगले जनम भी मुझे यही एहसास दे देना


                      ---राहुल मिश्रा 


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