Sunday, 29 October 2017
Thursday, 19 October 2017
दीपावली
है अदा प्यारी अनोखी, छोटी सी ही इन दीयों की |
है ये कोमल लौ जो भर दे, रोशनी अंधियार में ||
तन को मन को सींच जाती, खुशिओं से आनदं से |
जब हवा संग लौ थिरकती, मन नाचता आनदं से ||
कर प्रफुलित मन को मेरे, मोमबत्ती नाचती है |
गर दिए के सामने, ये खुद को फीकी मानती है ||
इस दिए और मोमबत्ती के उजाले को देखकर |
आखें दिखाती बिजली झालर, सभी को छेककर ||
अब तलक बातें हुई हैं, रोशनी अंधियार की |
गर पटाखों की ये धुन, कह गयी सब बातें अकेली ||
ये पटाखे लेके आते चमक, उस नन्ही आखँ में |
मुसुकुरा देते हम भी, इस कदर इस शाम में ||
है अदा प्यारी अनोखी, छोटी सी ही इन दीयों की |...
...राहुल मिश्रा
Sunday, 8 October 2017
रेत की ईमारत
रेत से ईमारत बनने के ख़्वाब में, चला पड़ा टीलों वाले रेगिस्तान में |
वे टीले कभी थे सामने, कभी ओझल हुए, उड़ चले कभी आसमा में ||
मै भी कुछ मशगूल था, कुछ मज़बूर था अपने ईमारत बनाने वाले ख़वाब में |
हारते मन को सीच जाती वो बूंद, जो पड़ जाती कभी, उस दहकते रेतिस्तान में ||
जब हवा उड़ा ले जाती रेत को, मन भूल जाता हकीकत के इस खेल को |
कर विकल इस विरह से मन को, दे जाती कुछ बुँदे मेरे इन दो नयन को ||
मैं रेत की ईमारत के सपने को हकिता बना पाऊं, पुरज़ोर कोशिस करके देखूंगा |
या तो मेरी ये ईमारत होगी, या मैं खुद ही ईमारत हो इस जहाँ से चला जाऊंगा ||
रेत से ईमारत बनने के ख़्वाब में, चला पड़ा टीलों वाले रेगिस्तान में |...
...राहुल मिश्रा
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सत्य सिर्फ़ अंत है
सत्य सिर्फ़ अंत है सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है समय से ...
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सत्य सिर्फ़ अंत है सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है समय से ...
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मेरी जिंदगी वही थी, बस मायने अलग थे सब रो के जी रहे थे, हम हस के पी रहे थे सब रास्ते वही थे, सौ आँधियाँ चली थीं सब सावन बने थे, मेरी आँख ...
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तू सामने बैठे मैं फूट के रो लूँ सब कह दूँ, तेरी तकलीफ़ भी सुन लूँ मेरी बेबसी सब उस दिन तू जान जाएगी मेरी खुशियों की वजह तू पहचान...

