Sunday, 29 October 2017

प्राकृतिक उल्लास

पल पल बदल रहे जिंदगानी, लोगों से किस आश में ,

इधर उधर क्यों भटक रहे हो, जाने किसकी तलाश में, 

भटकना है तो भटक के देखो, प्यारी सी फुलवारी में ,

तन और मन तेरा महक उठेगा, नाचेगा इस क्यारी में ||1||


खोना है तो खोके देखो, मधुरमई इन हवा के झोकों में ,

पल में बहा ले जायेगें ये, मन मोह्ग्रसित जो जीने में ,

इस चाँद से सीखलो तुम, जीवन बदल रहा पल पल में ,

कभी अमावस्या कभी पूर्णिमा, कुछ भी नहीं उसके वस में ||2||


सूर्य अटल है, अटल है उसकी किरणे इस संसार में, 

ईश अटल है बैठा है जो, तेरे मन रूपी  घर-बार में,

नदियों की ये अविरलता, गतिमान रही है हर पल में 

समय भी है एक चंचल धारा, बांध सकोगे न बांधो में ||3||


पल पल बदल रहे जिंदगानी, लोगों से किस आश में |

इधर उधर क्यों भटक रहे हो, जाने किसकी तलास में ||..


                                                           ---राहुल मिश्रा 











 

      

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