Saturday, 12 May 2018

मातृ दिवस

वो नायाब सा बंधन, रचा जो ईस ने दिल से
बन के आ गई खुद ही, खुदा का रूप अम्बर से 


अनोखी बात थी उसमे, रची थी कल्पना उसने
कुछ ममता पिरोई थी, कुछ एहसास सींचे थे 


बना के माँ को संजोया था, मेरे बचपन का गुमान
जो है मेरे अन्दर पनपता, माँ के प्यार का अभिमान 


जहान में रह कर , जहाँ को मैं चला जाऊँ
उसकी सारी ममता और प्यार को बिसराऊँ 


मगर उसके सीने में, धड़कता ही जाए
मेरे लिए ममता और स्नेह का अम्बार 


सच है ये भी लकिन, मुकम्मल इस जहान का
कोई टिक नहीं पाया, जिसने स्नेह बिसराया 


वो नायाब सा बंधन, रचा जो ईस ने दिल से 

बन के आ गई खुद ही, खुदा का रूप अम्बर से   


                                      ---राहुल मिश्रा 



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