Tuesday, 26 June 2018

अंदाज-ए -बयां

1.)
अँधेरी रात को , उजाले की किरण दे दे
मोहब्बत करने की एक तो वजह दे दे
माना की झूट ही झूट फैला है हर तरफ
न दे सको कुछ  तो , इस सच को जहर दे दे 


2.)
होकर कुछ बेधड़क अब मैं चलने लगा हूँ
चाल धीमी है मगर फासलों से तेज हूँ
 है धरा और गगन की दुरी कुछ कम नहीं
जो भी है मगर हौसलों की ऑन है
ये दुरी भी एक निश्चित मान है
आज धरती तो कल आसमान है
तो कल आसमान है ...


                       ...राहुल मिश्रा 

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