Monday, 30 July 2018

मसान


समझ से है परे बिलकुल, मन जा नहीं सकता 
हर ख्वाब को हकीकत में, बदला जा नहीं सकता 


मन सोचता है क्या, हकीकत को फ़साने को 
सपने थे मगर सपने, न अपने कहने को 

ये जीवन नाम है, महज़ एक पहेली का 
अक़्सर मात मिलती है, कुछ जीत जाने को  


ऐसी साज़-सज्ज़ा है, सबको लुभाने को 
मगर आते हैं सब अपना, बस रंग ज़माने को  


नम आँख से आए, एक रोज मुस्काए 
खली हथेली थी, जब मसान को आये ||


समझ से है परे बिलकुल, मन जा नहीं सकता 
हर ख्वाब को हकीकत में, बदला जा नहीं सकता

                                                 ---राहुल  मिश्रा 


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