Monday, 4 September 2017

गुरुजनों को समर्पित

समंदर के प्रखर प्रहरी ,बनाने को वे हैं मिलते |
एक छोटी सी आशा के, सहारे वे हमे मिलते ||


ये आशा है उठाने की ,बढ़ाने की , चलाने  की |
गगन पर कुछ और तारे लाने  की ,खिलने की ||


न कोइ स्वार्थ है  इसमें , बस  उम्मीद बसती  है|
हासिल करते हैं हम ,और उनकी आखें करती हैं ||


फर्ज बनता है  ,गुरुओं के लिये यही अपना |
पूरा कर गुजर जाएँ , उनकी आखों का सपना ||


समंदर के प्रखर प्रहरी ,बनाने को वे हैं मिलते |...


                                   .............राहुल मिश्रा



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