Tuesday, 26 September 2017

नन्हा सा बचपन

कल निकला मैं अरसों   के बाद , दशहरे वाले बाज़ार में |
बाज़ार था या था मेला , कौंन पड़े इन बातों  के बवाल  में ||


वो नन्हा सा बच्चा जो छिप गया था कहीं , न जाने कब जाग गया |
यूँ तो हो गए हम ज़वा, पर वो बच्चा खिलोनो के पीछे भाग गया ||


वे मिट्टी की मूर्ति , वे बहुत से गुबारे और न जाने कितने खिलोने |
वह बच्चा थिरकने लगा , नाचने लगा  लौट आए पुराने बचपने ||


वो अल्लढ़ सा बचपन संभल पता ,की फिर  झूले के पीछे भाग गया|
वो थोडा सा डर , थोड़ी सी मस्ती , कुछ गुनगुनाता हुआ मैं जाग गया ||


होड़ लगाये हैं  कुछ पाने की ,कुछ हासिल करने की , क्या कर गुजरने की |
वो खुशहाली , वो मस्ती , ना मिल पायेगी , कुछ मिट्टी के खिलोनों की ||


वक़्त अभी थमा नहीं , मिटा नहीं , अभी कुछ और बचपन बाकि है |
उन बच्चों को  लौटा दो , वो प्यारा बचपन, जिन्हें देखना अभी बाकि है ||


कल निकला मैं अरसों   के बाद , दशहरे वाले बाज़ार में |....


                                                         ...राहुल मिश्रा  

No comments:

Post a Comment

सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...