Saturday, 30 December 2017

धुंध के गीत

धुंध है घनी या अँधेरा घना है
मगर एक रोज सवेरा फ़ना है
राहें अलग हों चाहे फ़लक हों
मिलन की उमीदें हमेशा गगन हों 


मैं थक भी जाऊ, कदम डगमगाए
मगर मेरा दिल है की, चलता ही जाए
सांसे कम है मेरी, कोई न गम है
हौसले तो मेरे, सासों के दम है


दिल धड़कता रहे, सांसे चलती रहे
उमीदों की कस्ती यूँ ही बहेती रहे
हम यूँ हीं कुछ लिखते रहें
और वो लब से गुनगुनाते राहें
 


धुंध है घनी या अँधेरा घना है
मगर एक रोज सवेरा फ़ना है...


     
                    ...राहुल मिश्रा 

Tuesday, 19 December 2017

बस मन की

हाले दिल क्या कहें, कैसे मुस्कुराते रहे 

कुछ तो कमी रह गयी, जाने कैसे कहे 

सब के लब पे मुस्कुराहट देते रहें, 

उसमे खुद्बखुद खुश होते रहें 


पर हाल अब कुछ वैसे नहीं, 

वो लोग अब हम जैसे नहीं

कुछ ने कहा समय बदल गया,

हमें लगा की कुछ नहीं बस

दिल ही बदल गया  


किस्मत को क्या कोसूं ,

बस वो मन बदल गया

अल्फाज़ हैं मेरे मन में 

मगर वो एहसास निकल गया 


सपने देखने का शौक क्या 

सही-गलत हालात क्या 

जिस्म तो है या नहीं क्या पता

गर अब उस जिस्म में वो जान क्या ?


हाले दिल क्या कहें, कैसे मुस्कुराते रहे 

कुछ तो कमी रह गयी, जाने कैसे कहे 


                                ---राहुल मिश्रा 


     

   

Friday, 15 December 2017

आशायें

मुस्कराहट वो है जो, पहले तेरे लब को छु सके 

जिंदगी जीने से पहले, तुझमें जी के आ सके  

तंग गलियों में भटक लें, गर तू महल-ए-खास हो 

बूंद हूँ जो मै एक रेत पर, तू सगर-ए-हिन्द हो || 


हूँ मैं एक सूखे पेड़ का,वर्षों से उजड़ा तना

तू कली है लाल कोमल घूमता भंवरा घना  

मैं तड़पती प्यास से, धुप में फिरता रहूँ 

तू हो शीतल छाए में, मीठे पानी संग कहूँ||


तू हवा संग थिरकती, मैं तो सिमटी रेत हूँ

तू उजाला दिन का, मैं तो एक घनेरी रात हूँ 

एक बात मुझमे मगर, जो बहुत ही खास है

साथ पाने को तेरा मुझमे बहुत ही आश है ||


ना है कोई अंगेठी, ना तो कोई आग है 

गर पत्थर को मोम करने की प्यास है 

हार जाऊ मै,ये मुमकिन नहीं मेरी साँस तक

लै बनी रहे मेरी बस, जीत अंतिम आश तक ||


मुस्कराहट वो है जो, पहले तेरे लब को छु सके 

जिंदगी जीने से पहले, तुझमें जी के आ सके  


                                   ---राहुल मिश्रा 



         

      

      

   


   

Tuesday, 12 December 2017

बस_दिल_से

संभल संभल कर चलते हैं हम, अनजानी इस राह पर
खता कहीं ना हो जाये, किसी बेगाने ठहराव पर 


फ़रक नहीं पड़ता है उनको, गुजरे रहे हम किस पङाव से
लगते हैं उनकी नज़रों में, मोती बस कुछ बेभाव से 


यह प्रसंग है उस गूढ़ सत्य का, जिससे हो जाते बेगाने हैं
पर उनकी नज़रों में हम बस इक पागल दीवाने हैं  


अपना भी तो रुतवा देखो, चाहत के बड़े अपशाने हैं
गीत वही हम अक्सर गाते, जिसके ख़ूब चाहने वाले हैं 


उन गीतों को हम अनदेखा करते, जो वो अक्सर गाते हैं
वे बड़े हिम्मत वाले हैं, जो अपने धुन के मतवाले हैं 


उन मतवालों को तहे दिल से शलाम हमारा है,
समय से पहले मिल जायें वो हमको, ये पैगाम हमारा है   


संभल संभल कर चलते हैं हम, अनजानी इस राह पर
खता कहीं ना हो जाये, किसी बेगाने ठहराव पर |

                                                 ----राहुल मिश्रा 


सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...