Tuesday, 12 December 2017

बस_दिल_से

संभल संभल कर चलते हैं हम, अनजानी इस राह पर
खता कहीं ना हो जाये, किसी बेगाने ठहराव पर 


फ़रक नहीं पड़ता है उनको, गुजरे रहे हम किस पङाव से
लगते हैं उनकी नज़रों में, मोती बस कुछ बेभाव से 


यह प्रसंग है उस गूढ़ सत्य का, जिससे हो जाते बेगाने हैं
पर उनकी नज़रों में हम बस इक पागल दीवाने हैं  


अपना भी तो रुतवा देखो, चाहत के बड़े अपशाने हैं
गीत वही हम अक्सर गाते, जिसके ख़ूब चाहने वाले हैं 


उन गीतों को हम अनदेखा करते, जो वो अक्सर गाते हैं
वे बड़े हिम्मत वाले हैं, जो अपने धुन के मतवाले हैं 


उन मतवालों को तहे दिल से शलाम हमारा है,
समय से पहले मिल जायें वो हमको, ये पैगाम हमारा है   


संभल संभल कर चलते हैं हम, अनजानी इस राह पर
खता कहीं ना हो जाये, किसी बेगाने ठहराव पर |

                                                 ----राहुल मिश्रा 


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