Friday, 15 December 2017

आशायें

मुस्कराहट वो है जो, पहले तेरे लब को छु सके 

जिंदगी जीने से पहले, तुझमें जी के आ सके  

तंग गलियों में भटक लें, गर तू महल-ए-खास हो 

बूंद हूँ जो मै एक रेत पर, तू सगर-ए-हिन्द हो || 


हूँ मैं एक सूखे पेड़ का,वर्षों से उजड़ा तना

तू कली है लाल कोमल घूमता भंवरा घना  

मैं तड़पती प्यास से, धुप में फिरता रहूँ 

तू हो शीतल छाए में, मीठे पानी संग कहूँ||


तू हवा संग थिरकती, मैं तो सिमटी रेत हूँ

तू उजाला दिन का, मैं तो एक घनेरी रात हूँ 

एक बात मुझमे मगर, जो बहुत ही खास है

साथ पाने को तेरा मुझमे बहुत ही आश है ||


ना है कोई अंगेठी, ना तो कोई आग है 

गर पत्थर को मोम करने की प्यास है 

हार जाऊ मै,ये मुमकिन नहीं मेरी साँस तक

लै बनी रहे मेरी बस, जीत अंतिम आश तक ||


मुस्कराहट वो है जो, पहले तेरे लब को छु सके 

जिंदगी जीने से पहले, तुझमें जी के आ सके  


                                   ---राहुल मिश्रा 



         

      

      

   


   

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