Tuesday, 4 July 2017

छोटी सी बात

बड़ी मुश्किल में हूँ मौला ,किधर से हो के मैं गुजारूं |
जिधर भी देखता हूँ , उधर एक ख़ामोशी सिमटी है || 

भरा है  लोगों के घर में ,खजाना ढ़ेरों खुशियों का |
मगर उनको चाहत है , कुछ बड़ी सी खुशियों  की ||

अक्सर हम भूल जाते हैं ,हसीं का कोई पैमाना नहीं होता |
छोटी-छोटी सी चाहत   यूँ ही नहीं मिलती, उन्हें छोड़ देते हैं , ||

मेरी चाहत नहीं बड़ी खुशियां ,कंकर समेट कर पर्वत बना लूँगा |
पर्वत की चाहत अकसर हमें , कंकर से महरूम कर देती  ||

बड़ी मुश्किल में हूँ मौला ,किधर से हो के मैं गुजारूं |..............

---------------राहुल मिश्रा

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