Sunday, 20 August 2017

एक कविता माँ को समर्पित


माता के आँचल का व पल ,न भूल पाया है कोई भी |

उस "माँ" ने भी न भुला है ,मुख से निकला वह पहेला "माँ "||


यूँ तो हर दर पर सिर झुकता ,न झुका है माँ क दर पे |

गर झुका सिर माँ क दर पे ,फिर उसको कोई झुका न पाया है  ||


तेरे आँखों में आसूं थे ,माँ की आँखें भी नम थीं | 

तेरे चेहरे की लाली में ,माँ का चेहरा भी चमका था ||


जिसके आशिष से, उपजी ये कविता |

उस देवतुल्य माँ को शत-शत नमन हमारा है ||


---------------------राहुल मिश्रा

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