Monday, 26 June 2017

अरज

अरज है मेरी ये रब से, सुने फ़रियाद ये मेरी |

जिसका दीदार मैं चाहूं ,पलट कर देखले मुझको ||

तमन्ना रोज जगती है  ,जब मैं घर से निकलता हूँ |

न जाने किस मोड़ पर ये नैना , दो से चार हो जाये ||

बस दिल ही की बात

दिल में दिल की बातों को दबाये हुए हैं,
होठों पर आये लव को छुपाये हुए हैं||

गिर न जाये ये आशिया सैकरो सपनों का 
इसलिए अपनी चोरी चुराए हुए हैं||

सामने हैं वे फिर भी हम कुछ कहेते नहीं 
मन की बातों को मन में दबाये हुए हैं||

दिल में दिल की बातों को दबाये हुए हैं,
होठों पर आये लव को छुपाये हुए हैं||

-----------------------राहुल मिश्रा 

मेरी कलम से दिल की बात

बिखरना , टूटना ,तोडना मूझे नहीं मालुम और हे इस्वर मुझे सिखाना न कभी ।

ये नदानीय ,ये मस्तिया हमेशा रहे हमारी ,माग लेना ये जिंदगी जब इन्हें भूलना हो कभी।।         

                                                                                                                       .......राहुल मिश्रा

Sunday, 18 June 2017

मुझे और जीना सिखाने लगे हो

मुझे और जीना सिखाने लगे हो ,जैसे जैसे तुम पास आने लगे हो |

मोहबत के बस में है ये सारी दुनिया ,हमें भी मोहबत शिखाने लगे हो ||


यु तो मोहबत में मरता  है  जमाना ,गर हम मोहबत में जिए जा रहे हैं |

कितनी अनूठी है मेरी ये मोहबत , तेरी ही  खुशी में हसे जा रहे हैं ||


मालूम है मुझको तुम न हो मेरे , मगर फिर भी डगर पर तेरी चले जा रहे हैं |

कभी सूचता हूँ क्यों चाहते हैं  तुझको ? समझ में न आता कि क्या किये जा रहे हैं ||


डर ते नहीं हैं हम तो किसी से , क्यूंकि जिसम की चाहत नहीं हैं |

चाहत हमारी तो इतनी है पावन,मन से तुम्हे अक्सर पूजते हैं||


मुझे और जीना सिखाने लगे हो ,जैसे जैसे तुम पास आने लगे हो |


-------------------राहुल मिश्रा 


Saturday, 17 June 2017

विद्या गुरु और विद्यार्थी

1...............
समाज बदले  हैं, हालत बदले हैं ||

इस बदलते  दौर  में हम भी बदले हैं ||

न बदला कोई गुरु , बस ज्ञान के ठेकेदार बदले हैं||

समाज बदले हैं हालात बदले हैं||1 ||


2...................
तुम ज्ञान के सागर ,हम प्यासे भिखारी हैं ||

तुम पथप्रदरशक मेरे ,हम मूढ़ अज्ञानी ||

तुम हमको गढते हो ,हम मिट्टी पानी की ||

तेरे आसीस के खातिर ,हम सुबकुछ लुटा जाएँ ||

तुम ज्ञान क सागर ,हम प्यासे भिखारी हैं ||2||



----------------------राहुल मिश्रा

Tuesday, 13 June 2017

मनोभाव

एक खाली प्याली को ,कोई अंदेशा न था |
इसमें भी भर जायेगीं सनेह  की बूंदे ,कोई संदेशा न था ||


एक छोटी शी पहेचन ,यूँ  लोगों क जुबान पर आएगी |
कुछ इठलाती ,कुछ बलखाती ,कुछ नोक-झोक भर जाएगी ||


पहले इन सनेह की बूंदों को ,मैं समझ ही नहीं  पाया था |
फिर धीरे -धीरे  कतरा -कतरा , प्याली भर आया था ||


अब लगता है इस प्याली में ,कुछ खाली बचा नहीं|
क्या करूँ इस प्याली का ,अब भरनेवाले साथ नहीं ||


अजब माजरा समय का है ये ,कुछ समझ नहीं मुझको आता |
जिन लोगो ने भरी ये प्याली ,उन लोगो को अब नहीं पाता||


एक खाली प्याली को ,कोई अंदेशा न था |........



-----------------राहुल मिश्रा

सरल

लोगों  ने आज मेरे परिचय का प्रमाण माँगा है |

सरल सरिता में समंदर सा  ऊफ़ान  माँगा है ||


कहेते हैं लोग मत बन इतना सरल ए मुरख |

सरल को लोगों ने सरलता से मीटा ढाला है || 


सरल हैं वे लोगो जो जीते हैं दूसरो के लिए |

आज उस जीने का लोगों ने प्रमाण माँगा है ||


लोगों  ने आज मेरे परिचय का प्रमाण माँगा है |

सरल सरिता में समंदर सा  ऊफ़ान  माँगा है ||


लोगों  ने आज मेरे परिचय का प्रमाण माँगा है |.....

---------------------------राहुल मिश्रा


Sunday, 11 June 2017

रिश्तों की डोरी

बड़ी नाज़ुक सी ये डोरी  ,जो बँधे बँधन है||
समझ वालों को जो उलझाए , ऐसी ये  निगोड़ी है|

बिना किसी  के उलझाए,जो बड़ी  उलझती  है|
बड़ी नाज़ुक सी  ये डोरी है ,जो बँधे  बँधन है||

एक मीठी सी क़ड़वाहट , इसे तोड़ देती है|
मेरी मनो तो ऐ याऱों,संभलक़र बाँधो बँधन को|

अगर टुटे तो तोड़ेगें, हज़ारों बेकसुरो को|
बड़ी नाज़ुक शि ये डोरी है ,जो बँधे  बँधन है||
 
--------------Rahul Mishra



Saturday, 10 June 2017

लोगों के प्रकार

तरह  तरह  के  लोग  मिलेंगे , इस सतरंगी दुनिया में |
कुछ होंगे कुछ  तेरे जैसा ,कुछ बिलकुल ही अलग होंगे||

जो  होंगे  कुछ तेरे जैसे , तेरे मन को कुछ भायेंगे|
अलग होंगे जो तुझसे वे, मन से और अलग हो जायेंगे||

मुस्किल बड़ी है परखें  कैसे, अपने ही जैसे वालों को|
कपट वेष बनाये बैठे,इस दुनिया के मतवालों को||

मुख पर होंगे तेरे जैसे ,मन में कपट छिपाएंगे|
जब आयेगा विकत समय ,ये अपने रंग में आयेगे||

समझ लेना बस  इन बातों,काम बहुत ये आएगी |
परख मिलेगी उन लोगों की, जो सच्चे कपट रहित होंगे  ||

मान बढेगा शान बढेगा , ना होगा अभिमान कभी|                                                      

कपट मिटेगा समझ बढ़ेगी ,स्वारथ होगा चूर तभी ||

तरह  तरह  के  लोग  मिलेंगे , इस सतरंगी दुनिया में |                                                  

कुछ होंगे कुछ  तेरे जैसा ,कुछ बिलकुल ही अलग होंगे||........

 

---राहुल मिश्रा                                           
    


सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...