Saturday 30 December 2017
Tuesday 19 December 2017
बस मन की
हाले दिल क्या कहें, कैसे मुस्कुराते रहे
कुछ तो कमी रह गयी, जाने कैसे कहे
सब के लब पे मुस्कुराहट देते रहें,
उसमे खुद्बखुद खुश होते रहें
पर हाल अब कुछ वैसे नहीं,
वो लोग अब हम जैसे नहीं
कुछ ने कहा समय बदल गया,
हमें लगा की कुछ नहीं बस
दिल ही बदल गया
किस्मत को क्या कोसूं ,
बस वो मन बदल गया
अल्फाज़ हैं मेरे मन में
मगर वो एहसास निकल गया
सपने देखने का शौक क्या
सही-गलत हालात क्या
जिस्म तो है या नहीं क्या पता
गर अब उस जिस्म में वो जान क्या ?
हाले दिल क्या कहें, कैसे मुस्कुराते रहे
कुछ तो कमी रह गयी, जाने कैसे कहे
---राहुल मिश्रा
Friday 15 December 2017
आशायें
मुस्कराहट वो है जो, पहले तेरे लब को छु सके
जिंदगी जीने से पहले, तुझमें जी के आ सके
तंग गलियों में भटक लें, गर तू महल-ए-खास हो
बूंद हूँ जो मै एक रेत पर, तू सगर-ए-हिन्द हो ||
हूँ मैं एक सूखे पेड़ का,वर्षों से उजड़ा तना
तू कली है लाल कोमल घूमता भंवरा घना
मैं तड़पती प्यास से, धुप में फिरता रहूँ
तू हो शीतल छाए में, मीठे पानी संग कहूँ||
तू हवा संग थिरकती, मैं तो सिमटी रेत हूँ
तू उजाला दिन का, मैं तो एक घनेरी रात हूँ
एक बात मुझमे मगर, जो बहुत ही खास है
साथ पाने को तेरा मुझमे बहुत ही आश है ||
ना है कोई अंगेठी, ना तो कोई आग है
गर पत्थर को मोम करने की प्यास है
हार जाऊ मै,ये मुमकिन नहीं मेरी साँस तक
लै बनी रहे मेरी बस, जीत अंतिम आश तक ||
मुस्कराहट वो है जो, पहले तेरे लब को छु सके
जिंदगी जीने से पहले, तुझमें जी के आ सके
---राहुल मिश्रा
Tuesday 12 December 2017
बस_दिल_से
संभल संभल कर चलते हैं हम, अनजानी इस राह पर
खता कहीं ना हो जाये, किसी बेगाने ठहराव पर
फ़रक नहीं पड़ता है उनको, गुजरे रहे हम किस पङाव से
लगते हैं उनकी नज़रों में, मोती बस कुछ बेभाव से
यह प्रसंग है उस गूढ़ सत्य का, जिससे हो जाते बेगाने हैं
पर उनकी नज़रों में हम बस इक पागल दीवाने हैं
अपना भी तो रुतवा देखो, चाहत के बड़े अपशाने हैं
गीत वही हम अक्सर गाते, जिसके ख़ूब चाहने वाले हैं
उन गीतों को हम अनदेखा करते, जो वो अक्सर गाते हैं
वे बड़े हिम्मत वाले हैं, जो अपने धुन के मतवाले हैं
उन मतवालों को तहे दिल से शलाम हमारा है,
समय से पहले मिल जायें वो हमको, ये पैगाम हमारा है
संभल संभल कर चलते हैं हम, अनजानी इस राह पर
खता कहीं ना हो जाये, किसी बेगाने ठहराव पर |
----राहुल मिश्रा
Monday 27 November 2017
जिंदगी कभी कभी
कभी थोड़ी सी तनहाई, कभी थोड़ी सी रुसवाई
कभी थोड़ी सी भरमाई, कभी थोड़ी सी इठलाई
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |1|
साहिल है कभी दरिया, कभी समंदर हो के है आई
कभी दिखती है गीतों में, कभी खुद गीत हो आई
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |2|
कभी लगती है छोटी सी, कभी ये लम्बी दिखलाई
चमक से धूमिल करने को, सब को है ये सिखलाई,
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |3|
नशा खुशिओं का कभी, गम का लेके है आई
मुस्कुराते हुए जाऊ बस एक तमन्ना हो आई
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |4|
कभी थोड़ी सी तनहाई, कभी थोड़ी सी रुसवाई
कभी थोड़ी सी भरमाई , कभी थोड़ी सी इठलाई
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |
---राहुल मिश्रा
Wednesday 8 November 2017
हल-ए-इश्क
डरता हूँ की किसी दिन तेरे लब से हाँ न हो जाए ,
मेरे इन अल्लढ बचपने पे तू , फ़ना न हो जाए ,
फिर रह ही जायेगा क्या जिंदगी में कुछ और पाने को ,
मेरा इज़हार ,तेरा इंकार ,तेरा रूठना , मेरा मनाना
क्या रह जायेगा इस दुनिया से बताने को |
खुश हूँ यु ही, तेरी खुशिओं के सहारे,
कुछ आखों में चमकते सपनों के सितारे ,
तू खुश रहे और क्या चाहिए,
सपनों को भी साथ छोड़न चाहिए,
जहाँ भी झुकाना पड़े ये सर, झुकाना चाहिए ,
दुआ में बस तेरा ही जीकर आना चाहिए ||
ये खुशनुमा अल्फाज़ थे, बस थोडा गुदगुदाने को,
हकीकत से परे है ये केवल मन को लुभाने को ,
डरता हूँ की किसी दिन मैं ठान लूँगा, तुझे भुलाने को,
फिर अगर तेरी याद आई, फिर क्या बचेगा रुलाने को ||
है एक बात और जिसका डर मुझे अक्सर सताता है,
लब से कैसे कहूँ , मेरा मन सहम सा जाता है ,
कही तेरा हाल मेरा सा न हो, किसी दिन मेरे लिये ,
वक़्त बीत जाए , सरे सवेरे लिये ||
बस शाम ही शाम हो, और हम गुमनाम हों,
अल्लढ सा दिल, किसी गली में बदनाम हो ,
फिर तेरे अंशु कैसे सहूंगा मैं, जिंदगी कैसे जिऊंगा मैं,
अब इससे आगे क्या कहू ,कही आखें न कहे दे की हूँ मैं ||
....राहुल मिश्रा
Sunday 29 October 2017
प्राकृतिक उल्लास
पल पल बदल रहे जिंदगानी, लोगों से किस आश में ,
इधर उधर क्यों भटक रहे हो, जाने किसकी तलाश में,
भटकना है तो भटक के देखो, प्यारी सी फुलवारी में ,
तन और मन तेरा महक उठेगा, नाचेगा इस क्यारी में ||1||
खोना है तो खोके देखो, मधुरमई इन हवा के झोकों में ,
पल में बहा ले जायेगें ये, मन मोह्ग्रसित जो जीने में ,
इस चाँद से सीखलो तुम, जीवन बदल रहा पल पल में ,
कभी अमावस्या कभी पूर्णिमा, कुछ भी नहीं उसके वस में ||2||
सूर्य अटल है, अटल है उसकी किरणे इस संसार में,
ईश अटल है बैठा है जो, तेरे मन रूपी घर-बार में,
नदियों की ये अविरलता, गतिमान रही है हर पल में
समय भी है एक चंचल धारा, बांध सकोगे न बांधो में ||3||
पल पल बदल रहे जिंदगानी, लोगों से किस आश में |
इधर उधर क्यों भटक रहे हो, जाने किसकी तलास में ||..
---राहुल मिश्रा
Thursday 19 October 2017
दीपावली
है अदा प्यारी अनोखी, छोटी सी ही इन दीयों की |
है ये कोमल लौ जो भर दे, रोशनी अंधियार में ||
तन को मन को सींच जाती, खुशिओं से आनदं से |
जब हवा संग लौ थिरकती, मन नाचता आनदं से ||
कर प्रफुलित मन को मेरे, मोमबत्ती नाचती है |
गर दिए के सामने, ये खुद को फीकी मानती है ||
इस दिए और मोमबत्ती के उजाले को देखकर |
आखें दिखाती बिजली झालर, सभी को छेककर ||
अब तलक बातें हुई हैं, रोशनी अंधियार की |
गर पटाखों की ये धुन, कह गयी सब बातें अकेली ||
ये पटाखे लेके आते चमक, उस नन्ही आखँ में |
मुसुकुरा देते हम भी, इस कदर इस शाम में ||
है अदा प्यारी अनोखी, छोटी सी ही इन दीयों की |...
...राहुल मिश्रा
Sunday 8 October 2017
रेत की ईमारत
रेत से ईमारत बनने के ख़्वाब में, चला पड़ा टीलों वाले रेगिस्तान में |
वे टीले कभी थे सामने, कभी ओझल हुए, उड़ चले कभी आसमा में ||
मै भी कुछ मशगूल था, कुछ मज़बूर था अपने ईमारत बनाने वाले ख़वाब में |
हारते मन को सीच जाती वो बूंद, जो पड़ जाती कभी, उस दहकते रेतिस्तान में ||
जब हवा उड़ा ले जाती रेत को, मन भूल जाता हकीकत के इस खेल को |
कर विकल इस विरह से मन को, दे जाती कुछ बुँदे मेरे इन दो नयन को ||
मैं रेत की ईमारत के सपने को हकिता बना पाऊं, पुरज़ोर कोशिस करके देखूंगा |
या तो मेरी ये ईमारत होगी, या मैं खुद ही ईमारत हो इस जहाँ से चला जाऊंगा ||
रेत से ईमारत बनने के ख़्वाब में, चला पड़ा टीलों वाले रेगिस्तान में |...
...राहुल मिश्रा
Tuesday 26 September 2017
नन्हा सा बचपन
कल निकला मैं अरसों के बाद , दशहरे वाले बाज़ार में |
बाज़ार था या था मेला , कौंन पड़े इन बातों के बवाल में ||
वो नन्हा सा बच्चा जो छिप गया था कहीं , न जाने कब जाग गया |
यूँ तो हो गए हम ज़वा, पर वो बच्चा खिलोनो के पीछे भाग गया ||
वे मिट्टी की मूर्ति , वे बहुत से गुबारे और न जाने कितने खिलोने |
वह बच्चा थिरकने लगा , नाचने लगा लौट आए पुराने बचपने ||
वो अल्लढ़ सा बचपन संभल पता ,की फिर झूले के पीछे भाग गया|
वो थोडा सा डर , थोड़ी सी मस्ती , कुछ गुनगुनाता हुआ मैं जाग गया ||
होड़ लगाये हैं कुछ पाने की ,कुछ हासिल करने की , क्या कर गुजरने की |
वो खुशहाली , वो मस्ती , ना मिल पायेगी , कुछ मिट्टी के खिलोनों की ||
वक़्त अभी थमा नहीं , मिटा नहीं , अभी कुछ और बचपन बाकि है |
उन बच्चों को लौटा दो , वो प्यारा बचपन, जिन्हें देखना अभी बाकि है ||
कल निकला मैं अरसों के बाद , दशहरे वाले बाज़ार में |....
...राहुल मिश्रा
Friday 22 September 2017
सुकून-ए-यक़ीनन
एक गुदगुदी सी है मन में, या कोई सुकून है यक़ीनन |
अल्फाज़ नहीं की बयाँ करूँ, मगर एहसास है यक़ीनन ||
दूरियां कैसी भी हों , कितनी भी हो, फ़रक पड़ता नहीं |
दूरियां गर दिल की न हों , तो कोई बेअसर होता नहीं ||
लाख कह लो ज़न्नत देखी नहीं किस्सी ने ,अपनी निगाहों से |
मेहर है बस तेरी की , देखली जन्नत उनकी निगाहों से ||
मुस्कुराने की घड़ियाँ ढूढ़ते हो क्यों , इस छोटी जिंदगानी में |
हर घड़ी में मुस्कुराने की अदा , ढूढ़ लो इस लम्बी कहानी में ||
एक गुदगुदी सी है मन में, या कोई सुकून है यक़ीनन |
-------राहुल मिश्रा
Friday 8 September 2017
पाप पुण्य
पुण्य पाप का लेखा-जोखा ,जिस दिन लिखा जाएगा |
पुण्य होगा जो भी कुछ मेरे ,छोटे मटके में समाएगा ||
पाप एक ही कर बैठा हूँ , जो समंदर में न समाएगा |
बिना इज़ाज़त कर बैठा ,जो इश्क ना भुलाया जाएगा ||
प्रेम पाक है निर्मल मेरा , फिर भी पाप कहलाएगा |
मर्ज़ी नहीं जिसमे तेरी ,वो पाप कहा ही जाएगा ||
बैठा हु अब गंगा तटपर , धुलने को अब पाप सभी |
पाप धुलेगें या याद मिटेगी , जाने तू वो बात सभी ||
पुण्य पाप का लेखा-जोखा ,जिस दिन लिखा जाएगा |
पुण्य होगा जो भी कुछ मेरे ,छोटे मटके में समाएगा ||...
.
..राहुल मिश्रा
Monday 4 September 2017
गुरुजनों को समर्पित
समंदर के प्रखर प्रहरी ,बनाने को वे हैं मिलते |
एक छोटी सी आशा के, सहारे वे हमे मिलते ||
ये आशा है उठाने की ,बढ़ाने की , चलाने की |
गगन पर कुछ और तारे लाने की ,खिलने की ||
न कोइ स्वार्थ है इसमें , बस उम्मीद बसती है|
हासिल करते हैं हम ,और उनकी आखें करती हैं ||
फर्ज बनता है ,गुरुओं के लिये यही अपना |
पूरा कर गुजर जाएँ , उनकी आखों का सपना ||
समंदर के प्रखर प्रहरी ,बनाने को वे हैं मिलते |...
.............राहुल मिश्रा
Monday 28 August 2017
जीने की वजहें
कुछ छोटी सी जो यादें ,इस दिल में समेटी हैं |
वे पल हैं थोड़े से , या सदियाँ ही समेटी हैं ||
ये जीने की वजहें बड़ी, मुश्किल से मिलती हैं|
परख करना इन वजहोंका ,बस बेफ़जुली है ||
सही हों या गलत फ़रक ,पड़ता नहीं हम पर |
कोई मागें तो देदें , जान ऐसी कुछ वजहों पर ||
कुछ छोटी सी जो यादें ,इस दिल में समेटी हैं |
वे पल हैं थोड़े से , या सदियाँ ही समेटी हैं ||
कुछ छोटी सी जो यादें ,इस दिल में समेटी हैं |...
Sunday 20 August 2017
एक कविता माँ को समर्पित
माता के आँचल का व पल ,न भूल पाया है कोई भी |
उस "माँ" ने भी न भुला है ,मुख से निकला वह पहेला "माँ "||
यूँ तो हर दर पर सिर झुकता ,न झुका है माँ क दर पे |
गर झुका सिर माँ क दर पे ,फिर उसको कोई झुका न पाया है ||
तेरे आँखों में आसूं थे ,माँ की आँखें भी नम थीं |
तेरे चेहरे की लाली में ,माँ का चेहरा भी चमका था ||
जिसके आशिष से, उपजी ये कविता |
उस देवतुल्य माँ को शत-शत नमन हमारा है ||
---------------------राहुल मिश्रा
सावन और तेरी याद
आसमा पे कुछ बदल छाने लगे हैं
तेरी याद फिरसे दिलाने लगे हैं |
जो बीते कुछ दिन तेरी शोहबत में
याद उन दिनों की दिलाने लगे हैं ||
अब बादल घने होने लगे हैं
आखों में आँसू पिरोने लगे हैं |
उधर धरती को भीगाने लगे हैं
इधर मेरे गालो को भीगने लगे हैं ||
बिजलियों की गर्जना सुन रहा हूँ
या मेरे सिसकियों की आवाज हैं |
सहेम जाता था जिससे वही आवाज है
फ़रक बस ये मेरी ही दिल की बात है ||
आसमा पे कुछ बदल छाने लगे हैं
तेरी याद फिरसे दिलाने लगे हैं |
....................................राहुल मिश्रा
Tuesday 15 August 2017
मेरी अपनी सी दुनिया
ख्यालों की ख्वाबों की , मेरी अनोखी दुनिया है |
जहाँ बस मै हु ,मेरी और इस दुनिया का खुदा है ||
न डर है और न कोई, परेशानी महसूस होती है |
लक्ष्य जो सोचकर आया , करम भी वो ही होते हैं ||
न फिक्र है किसी की , न ही कोई जिक्र होता है |
मै बस मशगुल रहता हु ,अपनी ही दुनिया में ||
यु तो हर किसी की है ,अपनी सी ही एक दुनिया |
मगर सब के हालत नहीं ऐसे , जो देखे ये दुनिया ||
-------------राहुल मिश्रा
जहाँ बस मै हु ,मेरी और इस दुनिया का खुदा है ||
न डर है और न कोई, परेशानी महसूस होती है |
लक्ष्य जो सोचकर आया , करम भी वो ही होते हैं ||
न फिक्र है किसी की , न ही कोई जिक्र होता है |
मै बस मशगुल रहता हु ,अपनी ही दुनिया में ||
यु तो हर किसी की है ,अपनी सी ही एक दुनिया |
मगर सब के हालत नहीं ऐसे , जो देखे ये दुनिया ||
-------------राहुल मिश्रा
Monday 7 August 2017
Wednesday 2 August 2017
दिल की बात हवाओं के साथ
गुनगुनाती हवा , मुस्कुराती हवा |
मेरे लब से तेरे दिल ,तक ये जाती हवा ||1||
थोड़ी सी मस्तियाँ , थोड़ी सी खुशियाँ |
अपने में ही समेटे , ले जाती हवा ||2 ||
कुछ ख्यालों की , कुछ ख्याबों की बात |
साथ लेकर ये जाती ,मेरे दिल की बात ||3 ||
रुख ये ही रहे तेरा, मेरे लिए |
मुस्कुराता रहूँ मैं , यूँ ही तेरे साथ ||4 ||
गर जो बदला ये रुख , तेरा मेरे लिए |
मर ही जाऊँ ना मैं , यूँ ही तेरे लिए ||5 ||
जिस्म जिंदा रहे पर , तू ये ना समझ |
रूह भी उसमे बची , होगी कहीं ||6||
डरता हूँ मैं इन ख्यालों , से ही बस |
हकीकत में हुआ तो ,रहूँ ना अपने बस ||7||
प्राथना है मेरी बस , यही उस रब से |
बदले ना ये तेरा रुख ,कभी मेरे लिये ||8 ||
गुनगुनाती हवा , मुस्कुराती हवा |...
.........................................राहुल मिश्रा
Monday 24 July 2017
मेरे कमीज़ की ज़ेब
धड़कता है ये दिल मेरा, मेरी कमीज़ के अंदर|
उस कमीज़ के ऊपर ,एक ज़ेब है बड़ी सुंदर ||
उस ज़ेब में घर से मिले थे पैसे , बहुत ही कम |
थोड़ी सी शर्म थी उसमे , करम मेरा थे ना कम ||
जब मैं देखता था कुछ, अजब से ऐसे मंजर |
दिल करता था की मैं भूल जाऊ ,वो ज़ेब बड़ी सुंदर ||
फिर कुछ बातेयें याद आती हैं , कही थी कुछ लोगों ने |
मत भुलाना की ये ज़ेब , जो तेरी पहेचान है पगले ||
जो स्वाभिमान है तेरे ,और जो सम्मान है तेरा |
वे सरे तेरी ज़ेब से होकर ,बनते बिगड़ते हैं ||
धड़कने रोक न पाया , जो भी इस जग में है आया |
मैं भी रोक न पाऊं, जब ज़ेब अपनी सी कभी पाऊं ||
धड़कता है ये दिल मेरा, मेरी कमीज़ के अंदर|
उस कमीज़ के ऊपर ,एक ज़ेब थी बड़ी सुंदर ||.......
---------- ------राहुल मिश्रा
उस कमीज़ के ऊपर ,एक ज़ेब है बड़ी सुंदर ||
उस ज़ेब में घर से मिले थे पैसे , बहुत ही कम |
थोड़ी सी शर्म थी उसमे , करम मेरा थे ना कम ||
जब मैं देखता था कुछ, अजब से ऐसे मंजर |
दिल करता था की मैं भूल जाऊ ,वो ज़ेब बड़ी सुंदर ||
फिर कुछ बातेयें याद आती हैं , कही थी कुछ लोगों ने |
मत भुलाना की ये ज़ेब , जो तेरी पहेचान है पगले ||
जो स्वाभिमान है तेरे ,और जो सम्मान है तेरा |
वे सरे तेरी ज़ेब से होकर ,बनते बिगड़ते हैं ||
धड़कने रोक न पाया , जो भी इस जग में है आया |
मैं भी रोक न पाऊं, जब ज़ेब अपनी सी कभी पाऊं ||
धड़कता है ये दिल मेरा, मेरी कमीज़ के अंदर|
उस कमीज़ के ऊपर ,एक ज़ेब थी बड़ी सुंदर ||.......
---------- ------राहुल मिश्रा
Tuesday 18 July 2017
मेरे मन के एहसास
मेरे मन में जो उठते यूँ , कुछ एहसास ऐसे हैं |
जो मैं केवल अपने दिल में , महसूस करता हूँ ||
उमंगें उमड़ कर लेती हैं ,जो कुछ दिल में हिचकोले |
मोहबत इस को कहते हैं ,क्या ? मेरे दिल ऐ अलबेले ||
तराने पहेले भी सुनता ,और गुनगुनाता था |
मगर अब तरानों में, अजब सी मस्ती होती है ||
शब्दों से बयाँ करना ,नहीं मुमकिन हैं ये हालत |
मगर चाह कर भी मैं ,इसे बतला नहीं सकता ||
जो कुछ शब्द थे मेरे, वे हो गए मेरे ही मन के पहरेदार|
रहेमत है इन्ही पेहेरेदारों की , ये एहसास अब तक जिन्दा हैं ||
जो कुछ मेरे मन में है, वे जबां पे न आए |
डरता हूँ की ये एहसास ,न संग ले जाए ||
मेरे मन में जो उठते यूँ , कुछ एहसास ऐसे हैं |
------------------------------राहुल मिश्रा
जो मैं केवल अपने दिल में , महसूस करता हूँ ||
उमंगें उमड़ कर लेती हैं ,जो कुछ दिल में हिचकोले |
मोहबत इस को कहते हैं ,क्या ? मेरे दिल ऐ अलबेले ||
तराने पहेले भी सुनता ,और गुनगुनाता था |
मगर अब तरानों में, अजब सी मस्ती होती है ||
शब्दों से बयाँ करना ,नहीं मुमकिन हैं ये हालत |
मगर चाह कर भी मैं ,इसे बतला नहीं सकता ||
जो कुछ शब्द थे मेरे, वे हो गए मेरे ही मन के पहरेदार|
रहेमत है इन्ही पेहेरेदारों की , ये एहसास अब तक जिन्दा हैं ||
जो कुछ मेरे मन में है, वे जबां पे न आए |
डरता हूँ की ये एहसास ,न संग ले जाए ||
मेरे मन में जो उठते यूँ , कुछ एहसास ऐसे हैं |
------------------------------राहुल मिश्रा
Thursday 13 July 2017
चलो कुछ और लिखता हूँ
चलो कुछ और लिखता हूँ ,कलम को कुछ और घिसता हूँ|
निकल आये एक अनूठी बात , जिसे मैं न सोच सकता हूँ ||
कुरेद कर देखो एक सरिया को, लोहे की परख मिल जाएगी |
वो चमक जो दब गयी थी जंग के अन्दर, निखरकर सामाने आएगी ||
मुश्किल नहीं है कुछ भी पाना इस ज़हां में ,कोशिस कर के देखिये |
इबादत सच्ची हो तो रब भी आ जाता है ,बन्दों से मिलने के लिये ||
मन मार कर भी जीना क्या जीना हैं ,जिद तो कर के देखिये |
राहें मुश्किल हो सकती हैं , मगर नामुमकिन मत समझिये ||
चलो कुछ और लिखता हूँ ,कलम को कुछ और घिसता हूँ|......
------------------------------------राहुल मिश्र
निकल आये एक अनूठी बात , जिसे मैं न सोच सकता हूँ ||
कुरेद कर देखो एक सरिया को, लोहे की परख मिल जाएगी |
वो चमक जो दब गयी थी जंग के अन्दर, निखरकर सामाने आएगी ||
मुश्किल नहीं है कुछ भी पाना इस ज़हां में ,कोशिस कर के देखिये |
इबादत सच्ची हो तो रब भी आ जाता है ,बन्दों से मिलने के लिये ||
मन मार कर भी जीना क्या जीना हैं ,जिद तो कर के देखिये |
राहें मुश्किल हो सकती हैं , मगर नामुमकिन मत समझिये ||
चलो कुछ और लिखता हूँ ,कलम को कुछ और घिसता हूँ|......
------------------------------------राहुल मिश्र
Saturday 8 July 2017
Tuesday 4 July 2017
छोटी सी बात
बड़ी मुश्किल में हूँ मौला ,किधर से हो के मैं गुजारूं |
जिधर भी देखता हूँ , उधर एक ख़ामोशी सिमटी है ||
जिधर भी देखता हूँ , उधर एक ख़ामोशी सिमटी है ||
भरा है लोगों के घर में ,खजाना ढ़ेरों खुशियों का |
मगर उनको चाहत है , कुछ बड़ी सी खुशियों की ||
अक्सर हम भूल जाते हैं ,हसीं का कोई पैमाना नहीं होता |
छोटी-छोटी सी चाहत यूँ ही नहीं मिलती, उन्हें छोड़ देते हैं , ||
मेरी चाहत नहीं बड़ी खुशियां ,कंकर समेट कर पर्वत बना लूँगा |
पर्वत की चाहत अकसर हमें , कंकर से महरूम कर देती ||
बड़ी मुश्किल में हूँ मौला ,किधर से हो के मैं गुजारूं |..............
---------------राहुल मिश्रा
Saturday 1 July 2017
उमीदो का समंदर
उमीदों के समंदर के , हम भी सवाली हैं |
उमीदों पे है ये दुनिया ,उमीदों का है ये मंजर |
समझ के उमीदों को ,लाखों ने गगन छुआ |
चलो हम भी लोगों की उमीदों, को समझ जाएँ |
सफल हो कर जिंदगी में ,हम भी निखर जाएँ |
उमीदों पे है ये दुनिया ,उमीदों का है ये मंजर |
समझ के उमीदों को ,लाखों ने गगन छुआ |
चलो हम भी लोगों की उमीदों, को समझ जाएँ |
सफल हो कर जिंदगी में ,हम भी निखर जाएँ |
Monday 26 June 2017
अरज
अरज है मेरी ये रब से, सुने फ़रियाद ये मेरी |
जिसका दीदार मैं चाहूं ,पलट कर देखले मुझको ||
तमन्ना रोज जगती है ,जब मैं घर से निकलता हूँ |
न जाने किस मोड़ पर ये नैना , दो से चार हो जाये ||
जिसका दीदार मैं चाहूं ,पलट कर देखले मुझको ||
तमन्ना रोज जगती है ,जब मैं घर से निकलता हूँ |
न जाने किस मोड़ पर ये नैना , दो से चार हो जाये ||
बस दिल ही की बात
दिल में दिल की बातों को दबाये हुए हैं,
होठों पर आये लव को छुपाये हुए हैं||
गिर न जाये ये आशिया सैकरो सपनों का
इसलिए अपनी चोरी चुराए हुए हैं||
सामने हैं वे फिर भी हम कुछ कहेते नहीं
मन की बातों को मन में दबाये हुए हैं||
दिल में दिल की बातों को दबाये हुए हैं,
होठों पर आये लव को छुपाये हुए हैं||
-----------------------राहुल मिश्रा
होठों पर आये लव को छुपाये हुए हैं||
गिर न जाये ये आशिया सैकरो सपनों का
इसलिए अपनी चोरी चुराए हुए हैं||
सामने हैं वे फिर भी हम कुछ कहेते नहीं
मन की बातों को मन में दबाये हुए हैं||
दिल में दिल की बातों को दबाये हुए हैं,
होठों पर आये लव को छुपाये हुए हैं||
-----------------------राहुल मिश्रा
मेरी कलम से दिल की बात
बिखरना , टूटना ,तोडना मूझे नहीं मालुम और हे इस्वर मुझे सिखाना न कभी ।
ये नदानीय ,ये मस्तिया हमेशा रहे हमारी ,माग लेना ये जिंदगी जब इन्हें भूलना हो कभी।।
.......राहुल मिश्रा
Sunday 18 June 2017
मुझे और जीना सिखाने लगे हो
मुझे और जीना सिखाने लगे हो ,जैसे जैसे तुम पास आने लगे हो |
मोहबत के बस में है ये सारी दुनिया ,हमें भी मोहबत शिखाने लगे हो ||
यु तो मोहबत में मरता है जमाना ,गर हम मोहबत में जिए जा रहे हैं |
कितनी अनूठी है मेरी ये मोहबत , तेरी ही खुशी में हसे जा रहे हैं ||
मालूम है मुझको तुम न हो मेरे , मगर फिर भी डगर पर तेरी चले जा रहे हैं |
कभी सूचता हूँ क्यों चाहते हैं तुझको ? समझ में न आता कि क्या किये जा रहे हैं ||
डर ते नहीं हैं हम तो किसी से , क्यूंकि जिसम की चाहत नहीं हैं |
चाहत हमारी तो इतनी है पावन,मन से तुम्हे अक्सर पूजते हैं||
मुझे और जीना सिखाने लगे हो ,जैसे जैसे तुम पास आने लगे हो |
-------------------राहुल मिश्रा
Saturday 17 June 2017
विद्या गुरु और विद्यार्थी
1...............
समाज बदले हैं, हालत बदले हैं ||
इस बदलते दौर में हम भी बदले हैं ||
न बदला कोई गुरु , बस ज्ञान के ठेकेदार बदले हैं||
समाज बदले हैं हालात बदले हैं||1 ||
2...................
तुम ज्ञान के सागर ,हम प्यासे भिखारी हैं ||
तुम पथप्रदरशक मेरे ,हम मूढ़ अज्ञानी ||
तुम हमको गढते हो ,हम मिट्टी पानी की ||
तेरे आसीस के खातिर ,हम सुबकुछ लुटा जाएँ ||
तुम ज्ञान क सागर ,हम प्यासे भिखारी हैं ||2||
Tuesday 13 June 2017
मनोभाव
एक खाली प्याली को ,कोई अंदेशा न था |
इसमें भी भर जायेगीं सनेह की बूंदे ,कोई संदेशा न था ||
एक छोटी शी पहेचन ,यूँ लोगों क जुबान पर आएगी |
कुछ इठलाती ,कुछ बलखाती ,कुछ नोक-झोक भर जाएगी ||
पहले इन सनेह की बूंदों को ,मैं समझ ही नहीं पाया था |
फिर धीरे -धीरे कतरा -कतरा , प्याली भर आया था ||
अब लगता है इस प्याली में ,कुछ खाली बचा नहीं|
क्या करूँ इस प्याली का ,अब भरनेवाले साथ नहीं ||
अजब माजरा समय का है ये ,कुछ समझ नहीं मुझको आता |
जिन लोगो ने भरी ये प्याली ,उन लोगो को अब नहीं पाता||
एक खाली प्याली को ,कोई अंदेशा न था |........
-----------------राहुल मिश्रा
सरल
लोगों ने आज मेरे परिचय का प्रमाण माँगा है |
सरल सरिता में समंदर सा ऊफ़ान माँगा है ||
कहेते हैं लोग मत बन इतना सरल ए मुरख |
सरल को लोगों ने सरलता से मीटा ढाला है ||
सरल हैं वे लोगो जो जीते हैं दूसरो के लिए |
आज उस जीने का लोगों ने प्रमाण माँगा है ||
लोगों ने आज मेरे परिचय का प्रमाण माँगा है |
सरल सरिता में समंदर सा ऊफ़ान माँगा है ||
लोगों ने आज मेरे परिचय का प्रमाण माँगा है |.....
---------------------------राहुल मिश्रा
Sunday 11 June 2017
रिश्तों की डोरी
बड़ी नाज़ुक सी ये डोरी ,जो बँधे बँधन है||
समझ वालों को जो उलझाए , ऐसी ये निगोड़ी है|
बिना किसी के उलझाए,जो बड़ी उलझती है|
बड़ी नाज़ुक सी ये डोरी है ,जो बँधे बँधन है||
एक मीठी सी क़ड़वाहट , इसे तोड़ देती है|
मेरी मनो तो ऐ याऱों,संभलक़र बाँधो बँधन को|
अगर टुटे तो तोड़ेगें, हज़ारों बेकसुरो को|
बड़ी नाज़ुक शि ये डोरी है ,जो बँधे बँधन है||
--------------Rahul Mishra
समझ वालों को जो उलझाए , ऐसी ये निगोड़ी है|
बिना किसी के उलझाए,जो बड़ी उलझती है|
बड़ी नाज़ुक सी ये डोरी है ,जो बँधे बँधन है||
एक मीठी सी क़ड़वाहट , इसे तोड़ देती है|
मेरी मनो तो ऐ याऱों,संभलक़र बाँधो बँधन को|
अगर टुटे तो तोड़ेगें, हज़ारों बेकसुरो को|
बड़ी नाज़ुक शि ये डोरी है ,जो बँधे बँधन है||
--------------Rahul Mishra
Saturday 10 June 2017
लोगों के प्रकार
तरह तरह के लोग मिलेंगे , इस सतरंगी दुनिया में |
कुछ होंगे कुछ तेरे जैसा ,कुछ बिलकुल ही अलग होंगे||
जो होंगे कुछ तेरे जैसे , तेरे मन को कुछ भायेंगे|
अलग होंगे जो तुझसे वे, मन से और अलग हो जायेंगे||
मुस्किल बड़ी है परखें कैसे, अपने ही जैसे वालों को|
कपट वेष बनाये बैठे,इस दुनिया के मतवालों को||
मुख पर होंगे तेरे जैसे ,मन में कपट छिपाएंगे|
जब आयेगा विकत समय ,ये अपने रंग में आयेगे||
समझ लेना बस इन बातों,काम बहुत ये आएगी |
परख मिलेगी उन लोगों की, जो सच्चे कपट रहित होंगे ||
मान बढेगा शान बढेगा , ना होगा अभिमान कभी|
कपट मिटेगा समझ बढ़ेगी ,स्वारथ होगा चूर तभी ||
तरह तरह के लोग मिलेंगे , इस सतरंगी दुनिया में |
कुछ होंगे कुछ तेरे जैसा ,कुछ बिलकुल ही अलग होंगे||........
---राहुल मिश्रा
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सत्य सिर्फ़ अंत है
सत्य सिर्फ़ अंत है सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है समय से ...
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