Monday 24 July 2017

मेरे कमीज़ की ज़ेब

धड़कता है  ये दिल मेरा, मेरी कमीज़ के अंदर|
उस कमीज़ के ऊपर ,एक ज़ेब है  बड़ी  सुंदर ||

उस ज़ेब में घर से मिले थे पैसे , बहुत ही कम |
थोड़ी सी शर्म थी उसमे , करम मेरा थे ना कम ||

जब मैं देखता था कुछ, अजब से ऐसे  मंजर |
दिल करता था की मैं भूल जाऊ ,वो ज़ेब  बड़ी सुंदर ||

फिर कुछ बातेयें  याद आती हैं  , कही थी कुछ लोगों ने |
मत भुलाना की ये ज़ेब , जो तेरी पहेचान है पगले ||

जो स्वाभिमान है तेरे ,और जो सम्मान है तेरा |
वे सरे तेरी ज़ेब से होकर ,बनते बिगड़ते  हैं ||

धड़कने  रोक न पाया , जो भी इस जग में  है आया  |
मैं भी रोक न पाऊं, जब ज़ेब अपनी सी कभी पाऊं ||

धड़कता है  ये दिल मेरा, मेरी कमीज़ के अंदर|
उस कमीज़ के ऊपर ,एक ज़ेब थी बड़ी  सुंदर ||.......


---------- ------राहुल मिश्रा 







Tuesday 18 July 2017

मेरे मन के एहसास

मेरे मन में जो उठते  यूँ ,  कुछ एहसास ऐसे हैं |
जो मैं  केवल अपने दिल में , महसूस करता हूँ ||

उमंगें उमड़ कर लेती हैं ,जो कुछ दिल में हिचकोले |
मोहबत इस को कहते हैं ,क्या ? मेरे दिल ऐ अलबेले ||

तराने पहेले भी सुनता ,और गुनगुनाता था |
 मगर अब  तरानों में, अजब सी मस्ती होती है ||

शब्दों  से बयाँ करना ,नहीं मुमकिन हैं ये हालत |
मगर चाह कर भी मैं ,इसे बतला नहीं सकता ||

जो कुछ शब्द थे मेरे, वे हो गए मेरे ही मन के पहरेदार|
रहेमत है इन्ही पेहेरेदारों की , ये एहसास अब तक जिन्दा हैं ||

जो कुछ मेरे मन में है, वे जबां पे न आए |
डरता हूँ की ये एहसास ,न संग ले जाए ||

मेरे मन में जो उठते  यूँ ,  कुछ एहसास ऐसे हैं |

------------------------------राहुल मिश्रा

Thursday 13 July 2017

चलो कुछ और लिखता हूँ

चलो कुछ और लिखता हूँ ,कलम को कुछ और घिसता हूँ|
निकल आये एक अनूठी बात , जिसे  मैं न सोच सकता हूँ ||

कुरेद कर देखो एक सरिया को, लोहे की परख मिल जाएगी |
वो चमक जो दब गयी थी जंग के अन्दर, निखरकर सामाने आएगी ||

मुश्किल नहीं है कुछ भी पाना इस ज़हां में ,कोशिस कर के देखिये |
इबादत सच्ची हो तो रब भी आ जाता है ,बन्दों से  मिलने के लिये || 

मन मार कर भी जीना  क्या जीना हैं ,जिद तो कर के देखिये |
राहें  मुश्किल हो सकती हैं , मगर नामुमकिन मत समझिये ||

चलो कुछ और लिखता हूँ ,कलम को कुछ और घिसता हूँ|......

------------------------------------राहुल मिश्र 

Saturday 8 July 2017

दरिया दिल लोगों के लिये

हजारों कस्तियाँ किनारे पर ही ,डूब जाती हैं|

वे लोग होते हैं दरिया ,जिसकी कस्ती भँवर को चीर जाती हैं||

यूँ  तो हर दिल में ,दरिया होता है |

कोई पहचान  जाता है ,कोई न पहचान पता है ||

-----------------राहुल मिश्रा



Tuesday 4 July 2017

छोटी सी बात

बड़ी मुश्किल में हूँ मौला ,किधर से हो के मैं गुजारूं |
जिधर भी देखता हूँ , उधर एक ख़ामोशी सिमटी है || 

भरा है  लोगों के घर में ,खजाना ढ़ेरों खुशियों का |
मगर उनको चाहत है , कुछ बड़ी सी खुशियों  की ||

अक्सर हम भूल जाते हैं ,हसीं का कोई पैमाना नहीं होता |
छोटी-छोटी सी चाहत   यूँ ही नहीं मिलती, उन्हें छोड़ देते हैं , ||

मेरी चाहत नहीं बड़ी खुशियां ,कंकर समेट कर पर्वत बना लूँगा |
पर्वत की चाहत अकसर हमें , कंकर से महरूम कर देती  ||

बड़ी मुश्किल में हूँ मौला ,किधर से हो के मैं गुजारूं |..............

---------------राहुल मिश्रा

Saturday 1 July 2017

उमीदो का समंदर

उमीदों के समंदर के , हम भी सवाली हैं |

उमीदों पे है ये दुनिया ,उमीदों का है ये मंजर |

समझ  के उमीदों को  ,लाखों ने गगन छुआ |

चलो हम भी लोगों की उमीदों, को समझ जाएँ |

सफल हो कर जिंदगी में ,हम भी निखर जाएँ |
  

सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...