Friday 25 January 2019
Monday 21 January 2019
नज़रिया
मेरी जिंदगी वही थी, बस मायने अलग थे
सब रो के जी रहे थे, हम हस के पी रहे थे
सब रास्ते वही थे, सौ आँधियाँ चली थीं
सब सावन बने थे, मेरी आँख मिटचुकी थी
मेरी आँख मेरी कलम बन गयी है
मुस्कान की वज़ह भी कहीं है ?
जो इतनी हसी है, वो इतनी हसीं है
रोने ना देती, वो ऐसी परी है
हु अकेला सड़क पे, मेले सजे हैं
फ़रक पड़ता है क्या, जब दिखता वही है
मैं रहूँ ना रहूँ, ये दिल के मेले रहेंगे
ये चाहत रहेगी, कुछ अकेले रहेंगे
---राहुल मिश्रा
Tuesday 1 January 2019
दिल की पुकार
मेरे राग-राग में बसता है, तू कड़-कड़ में रहता है
सुना है चंद लोगों से, हवा में रह के बेहता है
हवायेँ रोज़ चलती हैं, मुझसे होकर गुजरती है
किसी दिन उन हवाओं में, बस दो पल ही बाँहों में
तूँ भेज दे उसको, नाम है जिसका मेरी हर दुवाओँ में
तूँ भी थक गया होगा, मेरी एक ही ख़्वाहिश से
हर रोज उठती, मेरी एक ही फ़रमाइश से
जब तक साँस देगा तू, मुझे अल्फ़ाज़ देगा तू
मुक़म्मल हर क़लम, उसी का नाम लिखेगी
तेरे चरणों में उसे पाने का अरमान लिखेगी
अगर तू बाँध ना पाया, वो डोरी सात जन्मों की
तरस खाकर सही मुझे, बस यही अंजाम दे देना
अगले जनम भी मुझे यही एहसास दे देना
---राहुल मिश्रा
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सत्य सिर्फ़ अंत है
सत्य सिर्फ़ अंत है सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है समय से ...
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