Tuesday 27 November 2018

सपनों के सिलसिले

ना  क़लम थी, ना स्याही थी 

मैं था और मेरी तन्हाई थी 


उकेरूँ शब्द क्या, निःशब्द की ख्वाहिश थी 

लम्हों का फ़र्क था बस, जिंदगी तो आज़माईश थी 


बनाया था  घोसला, तिनको को जोड़ के 

रह लिए कुछ पल, फिर आँधियों की फ़रमाईश थी 



प्रेम की मोतियाँ पिरोते रहेंगे, हार के ख़्वाब में 

टूट जाने पर ग़म ना होगा, प्रेम की परिभाष में 


सपनों के सिलसिलें सजते रहेंगे, तूफ़ान आते रहेंगे 

पर मुक़्क़मल जिंदगी चलती रहेगी, लोग आते जाते रहेंगे 

                                            

                                       ---राहुल मिश्रा    

सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...