Wednesday 5 September 2018

शिक्षक दिवस भाग - 2

शब्दहीन था ये तन, तब ज़ुबान मुझको मिल गई  

लड़खड़ा के जा गिरा, अब चाल मुझको मिल गई |  

 

थोड़ी मस्ती छाई थी, ख़ुशियाँ बहुत सी लाई थी 

तब कदम कुछ डगमगाते, पहुंचे उनके सानिध्य में |    

 

अब लबों पे ख़ुशियाँ थी, थपकियाँ थी प्यारे की  

अपने अल्लढ़ बचपने में, ज्ञान की शुरुआत थी |  

 

फिर परस्पर चल पड़ा ये सिलसिला, कुम्हार का  

नीव रखी गयी थी, तब नव किरण आकाश की |  

 

हम जहाँ से हो के आए, और जहाँ में जो होके जाएँ  

प्यार की थपकी गुरु की, पथ सुगम अविरल बनाए || 


हम जहाँ से हो के आए, और जहाँ में जो होके जाएँ  

प्यार की थपकी गुरु की, पथ सुगम अविरल बनाए ... 


                                               ... राहुल मिश्रा 


सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...