Monday 27 November 2017

जिंदगी कभी कभी

कभी थोड़ी सी तनहाई, कभी थोड़ी सी रुसवाई
कभी थोड़ी सी भरमाई, कभी थोड़ी सी इठलाई
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |1|


साहिल है कभी दरिया, कभी समंदर हो के है आई
कभी दिखती है गीतों में, कभी खुद गीत हो आई
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |2|


कभी लगती है छोटी सी, कभी ये लम्बी दिखलाई
चमक से धूमिल करने को, सब को है ये सिखलाई,
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |3|


नशा खुशिओं का कभी, गम का लेके है आई
मुस्कुराते हुए जाऊ बस एक तमन्ना हो आई
 यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |4| 


कभी थोड़ी सी तनहाई, कभी थोड़ी सी रुसवाई
कभी थोड़ी सी भरमाई , कभी थोड़ी सी इठलाई
यही है जिंदगी, सब ने यही हमको बतलाई |


                                          ---राहुल मिश्रा










Wednesday 8 November 2017

हल-ए-इश्क

डरता हूँ की किसी दिन तेरे लब से हाँ न हो जाए ,

मेरे  इन अल्लढ बचपने  पे तू , फ़ना न हो जाए ,

फिर रह ही जायेगा क्या जिंदगी में कुछ और पाने को ,

मेरा इज़हार ,तेरा इंकार ,तेरा रूठना , मेरा मनाना 

क्या रह जायेगा  इस दुनिया से बताने को |


खुश हूँ  यु ही, तेरी खुशिओं के सहारे,

कुछ आखों में चमकते सपनों के सितारे ,

तू खुश रहे  और क्या चाहिए, 

सपनों  को भी साथ छोड़न चाहिए,

जहाँ भी झुकाना पड़े ये सर, झुकाना चाहिए ,

दुआ में बस तेरा ही जीकर आना  चाहिए ||


ये खुशनुमा अल्फाज़ थे, बस थोडा गुदगुदाने को,

हकीकत से परे है ये केवल मन को लुभाने  को ,

डरता हूँ की किसी दिन मैं ठान लूँगा, तुझे भुलाने को,

फिर अगर तेरी याद आई, फिर क्या बचेगा रुलाने को ||


है एक बात और जिसका डर  मुझे अक्सर सताता है, 

लब से कैसे कहूँ , मेरा मन सहम सा जाता है ,

कही तेरा हाल मेरा सा न हो, किसी दिन मेरे लिये ,

वक़्त बीत जाए , सरे सवेरे लिये ||


बस शाम ही शाम हो, और हम गुमनाम हों,

अल्लढ सा दिल, किसी गली में बदनाम हो ,

फिर तेरे अंशु  कैसे सहूंगा मैं, जिंदगी कैसे जिऊंगा मैं,

अब इससे आगे क्या कहू ,कही आखें न कहे दे की हूँ मैं ||  


                                                       ....राहुल मिश्रा 

    

     


सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...