Tuesday 27 March 2018

पागल कलम

मेरी कलम भी बस, तेरे अल्फाज़ लिखती है
मेरे जश्बात लिखती है, तेरे अहसास लिखती है 


कभी कलियाँ ये लिखती है, कभी गालियाँ ये लिखती है
तेरे चंचल सी वादी में, दिले-ए-गुलज़ार लिखती है

  

तेरे मोहल्ले से गुज़रती, आँख लिखती है
तेरे अलगाव लिखती है, मेरे बदलाव लिखती है


मेरी आश लिखती है, तेरी तलाश लिखती है
ये पागल कलम तो, तुझे हर बार लिखती है


मेरी कलम भी बस, तेरे अल्फाज़ लिखती है
मेरे जश्बात लिखती है, तेरे अहसास लिखती है 


                 
                                          ....राहुल मिश्रा

    

Wednesday 14 March 2018

मेरे घर भी आ जाना

फुर्सत मीले उलझन से तो कभी मेरे घर भी आ जाना
महका देना आँगन को कुछ कलियों को खीला  जाना ||1||


आना कुछ ऐसे की सारी गालियाँ सो जाएँ, बेसुध नसे में खो जाएँ
बस एक प्यारी थपकी से, लेकिन तुम मुझे जगा देना
बतला देना जतला देना, लो आई हूँ तेरे घर पे
मुस्का देना  कुछ, समझूँ की तुम भी खुश  हो
छड़ भर के लिये सही, कुछ सपनों में खो जाऊ
माना के वो पल झुठे हो, सपने कठिन अनूठे हो
बस आ जाना तू आ जाना, मेरे घर भी तू आ जाना ||2|| 


   
विनती इतनी बस मेरी है, कुछ अधिक देर मत कर देना
माना तुम भी उलझे हो लकिन मेरी उलझन के सुलझे हो
आखें द्वार निहारेगी, सासें आहट तेरी पहचानेगी
धड़कन की क्या बात कहूँ वो पुरजोर धड़कती जाएँगी
तू आ जाना बस आ जाना , मेरे घर भी तू आ जाना ||3|| 


फुर्सत मीले उलझन से तो कभी मेरे घर भी आ जाना
महका देना आँगन को कुछ कलियों को खीला  जाना...
                               
                         

   ....राहुल मिश्रा 


सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...