Saturday 12 May 2018

मातृ दिवस

वो नायाब सा बंधन, रचा जो ईस ने दिल से
बन के आ गई खुद ही, खुदा का रूप अम्बर से 


अनोखी बात थी उसमे, रची थी कल्पना उसने
कुछ ममता पिरोई थी, कुछ एहसास सींचे थे 


बना के माँ को संजोया था, मेरे बचपन का गुमान
जो है मेरे अन्दर पनपता, माँ के प्यार का अभिमान 


जहान में रह कर , जहाँ को मैं चला जाऊँ
उसकी सारी ममता और प्यार को बिसराऊँ 


मगर उसके सीने में, धड़कता ही जाए
मेरे लिए ममता और स्नेह का अम्बार 


सच है ये भी लकिन, मुकम्मल इस जहान का
कोई टिक नहीं पाया, जिसने स्नेह बिसराया 


वो नायाब सा बंधन, रचा जो ईस ने दिल से 

बन के आ गई खुद ही, खुदा का रूप अम्बर से   


                                      ---राहुल मिश्रा 



Sunday 6 May 2018

मुझे इल्ज़ाम देने को

बरस के बदली ये दिल को, मधुर एहसास देने को
बहा के सैकड़ों गम को, मुझे अल्फाज़ देने को 
 


शब्दों से पिरोने को, जुबाँ-ए- खास होने को 
पापों को धुले ऐसे, बनारस घाट होने को 


वो आएँ मुझे मेरे, सरे इल्ज़ाम देने को
मेरी सब चिठ्ठीयां, सब पैगाम देने को
  


ज़ेह्म में सोचकर, मधुर एक गीत गाने को
वो आएँ मेरे दर पे, कई वजहें बताने को 


हो आख़री तूफ़ा, बस मुझको मिटाने को
मगर आएँ वो, अपनी सूरत दिखाने को 
 


बरस के बदली ये दिल को, मधुर एहसास देने को
बहा के सैकड़ों गम को, मुझे अल्फाज़ देने को 


                                   ---राहुल मिश्रा 

 

सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...