Saturday 30 December 2017

धुंध के गीत

धुंध है घनी या अँधेरा घना है
मगर एक रोज सवेरा फ़ना है
राहें अलग हों चाहे फ़लक हों
मिलन की उमीदें हमेशा गगन हों 


मैं थक भी जाऊ, कदम डगमगाए
मगर मेरा दिल है की, चलता ही जाए
सांसे कम है मेरी, कोई न गम है
हौसले तो मेरे, सासों के दम है


दिल धड़कता रहे, सांसे चलती रहे
उमीदों की कस्ती यूँ ही बहेती रहे
हम यूँ हीं कुछ लिखते रहें
और वो लब से गुनगुनाते राहें
 


धुंध है घनी या अँधेरा घना है
मगर एक रोज सवेरा फ़ना है...


     
                    ...राहुल मिश्रा 

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