Tuesday 27 November 2018
Sunday 28 October 2018
सर की चुनर
मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ
कह दूँ था जो तेरे दर पर, सब क़िस्सा अल्फ़ाज़ करूँ
मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ ||1||
बड़ी लगन थी, बड़ी ललक थी, कैसे मैं इज़हार करूँ
चेहरा था वो जैसे, ऐसे बिन देखे ही प्यार करूँ
मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ ||2||
बात करूँ क्या उस लम्हें की, चटक सी जब सर चुनर थी
माथे था तिलक अनोख़ा, भोली सी एक सूरत थी
मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ ||3||
मैंने खुद को रोक लिया, पर क़लम पे क्या पाबंदी है
दिल का हाल सुनाऊँ कैसे, उसकी क्या रज़ामंदी है
मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ||4||
---राहुल मिश्रा
Wednesday 5 September 2018
शिक्षक दिवस भाग - 2
शब्दहीन था ये तन, तब ज़ुबान मुझको मिल गई
लड़खड़ा के जा गिरा, अब चाल मुझको मिल गई |
थोड़ी मस्ती छाई थी, ख़ुशियाँ बहुत सी लाई थी
तब कदम कुछ डगमगाते, पहुंचे उनके सानिध्य में |
अब लबों पे ख़ुशियाँ थी, थपकियाँ थी प्यारे की
अपने अल्लढ़ बचपने में, ज्ञान की शुरुआत थी |
फिर परस्पर चल पड़ा ये सिलसिला, कुम्हार का
नीव रखी गयी थी, तब नव किरण आकाश की |
हम जहाँ से हो के आए, और जहाँ में जो होके जाएँ
प्यार की थपकी गुरु की, पथ सुगम अविरल बनाए ||
हम जहाँ से हो के आए, और जहाँ में जो होके जाएँ
प्यार की थपकी गुरु की, पथ सुगम अविरल बनाए ...
... राहुल मिश्रा
Wednesday 22 August 2018
रुखसार
मैं अनोखा अनकहा सा, एक कहानी बन गया
कुछ हवा के झोकों संग, यूँ ही बहता रह गया ||
अब मेरी पहचान क्या, मैं ढूँढता गलियों में हूँ
तब सरल वो सुन ना पाया, आज पत्थर बाँटता हूँ ||
तब हँसी थी, जब ख़ुशी थी, होठों पे मुस्कान भी
अब हँसी है, नम खुशी है, बनती है मुस्कान भी ||
दूरी कम है कहे भी देते, फासले आकाश के
गर अब हम कहे ना पाते, सामने रुखसार के ||
मैं अनोखा अनकहा सा, एक कहानी बन गया
कुछ हवा के झोकों संग, यूँ ही बहता रह गया || ....
...राहुल मिश्रा
Monday 30 July 2018
मसान
समझ से है परे बिलकुल, मन जा नहीं सकता
हर ख्वाब को हकीकत में, बदला जा नहीं सकता
मन सोचता है क्या, हकीकत को फ़साने को
सपने थे मगर सपने, न अपने कहने को
ये जीवन नाम है, महज़ एक पहेली का
अक़्सर मात मिलती है, कुछ जीत जाने को
ऐसी साज़-सज्ज़ा है, सबको लुभाने को
मगर आते हैं सब अपना, बस रंग ज़माने को
नम आँख से आए, एक रोज मुस्काए
खली हथेली थी, जब मसान को आये ||
समझ से है परे बिलकुल, मन जा नहीं सकता
हर ख्वाब को हकीकत में, बदला जा नहीं सकता
---राहुल मिश्रा
Friday 13 July 2018
आँसू का रिश्ता
चंद पन्नों में सिमटी हुई जिंदगी
आँसुओ से भिगोती है ये जिंदगी
मौका जब था ख़ुशी का आँख नम कर दिया
ग़म में आखों को ग़म से तर-बतर कर दिया
ऋतू चाहे जो हो मौसम फ़र्क क्या पड़ा
बारिसों में बस आँखों पे परदा पड़ा
थी गर्मी जब बस उसम से भरी
आँखों में ना जाने क्या सुलगा दिया
धुंध में जब सब धुंधला हुआ
बर्फ़ में फिर आँसू पिघला हुआ
आँख जब तक है आँसू आयेंगे ही
खुशी ग़म में रुलायेंगे भी
मुस्कुराते हुए, आँसू ख़ुशियों के लिए
एक दिन हम जहाँ से जायेंगे भी ||
चंद पन्नों में सिमटी हुई जिंदगी
आँसुओ से भिगोती है ये जिंदगी ...
---राहुल मिश्रा
Tuesday 26 June 2018
अंदाज-ए -बयां
1.)
अँधेरी रात को , उजाले की किरण दे दे
मोहब्बत करने की एक तो वजह दे दे
माना की झूट ही झूट फैला है हर तरफ
न दे सको कुछ तो , इस सच को जहर दे दे
2.)
होकर कुछ बेधड़क अब मैं चलने लगा हूँ
चाल धीमी है मगर फासलों से तेज हूँ
है धरा और गगन की दुरी कुछ कम नहीं
जो भी है मगर हौसलों की ऑन है
ये दुरी भी एक निश्चित मान है
आज धरती तो कल आसमान है
तो कल आसमान है ...
...राहुल मिश्रा
Friday 8 June 2018
देखे हैं
टूटे इश्क़ के अम्बर, नदी शैलाब देखे हैं
रोशन घरों में भी, बुझते चिराग़ देखे हैं
हवा के रुख बदलते ही, बदलते भाव देखे हैं
खुदगर्जी के बीजों में, पनपते बाग़ देखे हैं
शरद मौसम में पसीना, तर -बतर कर दे
लोगों के बदलते, ऐसे व्यवहार देखे हैं
फरेबी इस दुनिया में, झूठे वादे भी देखे हैं
निभाते कोई वादे हैं, बाकि तोड़े ही तोड़े हैं
टूटे इश्क़ के अम्बर, नदी शैलाब देखे हैं
रोशन घरों में भी, बुझते चिराग़ देखे हैं ...
...राहुल मिश्रा
Saturday 12 May 2018
मातृ दिवस
वो नायाब सा बंधन, रचा जो ईस ने दिल से
बन के आ गई खुद ही, खुदा का रूप अम्बर से
अनोखी बात थी उसमे, रची थी कल्पना उसने
कुछ ममता पिरोई थी, कुछ एहसास सींचे थे
बना के माँ को संजोया था, मेरे बचपन का गुमान
जो है मेरे अन्दर पनपता, माँ के प्यार का अभिमान
जहान में रह कर , जहाँ को मैं चला जाऊँ
उसकी सारी ममता और प्यार को बिसराऊँ
मगर उसके सीने में, धड़कता ही जाए
मेरे लिए ममता और स्नेह का अम्बार
सच है ये भी लकिन, मुकम्मल इस जहान का
कोई टिक नहीं पाया, जिसने स्नेह बिसराया
वो नायाब सा बंधन, रचा जो ईस ने दिल से
बन के आ गई खुद ही, खुदा का रूप अम्बर से
---राहुल मिश्रा
Sunday 6 May 2018
मुझे इल्ज़ाम देने को
बरस के बदली ये दिल को, मधुर एहसास देने को
बहा के सैकड़ों गम को, मुझे अल्फाज़ देने को
शब्दों से पिरोने को, जुबाँ-ए- खास होने को
पापों को धुले ऐसे, बनारस घाट होने को
वो आएँ मुझे मेरे, सरे इल्ज़ाम देने को
मेरी सब चिठ्ठीयां, सब पैगाम देने को
ज़ेह्म में सोचकर, मधुर एक गीत गाने को
वो आएँ मेरे दर पे, कई वजहें बताने को
हो आख़री तूफ़ा, बस मुझको मिटाने को
मगर आएँ वो, अपनी सूरत दिखाने को
बरस के बदली ये दिल को, मधुर एहसास देने को
बहा के सैकड़ों गम को, मुझे अल्फाज़ देने को
---राहुल मिश्रा
Friday 13 April 2018
मौसम और मेरा दिल
मौसम बदल गया मंदिर का, मस्ज़िद गिरिजा बदले
जिस दिन वो न आए पनघट, हम बूंद -बूंद को तरसे
गलियाँ भी अब सुनी पड़ गई, सुनी हो गयी धरती
सुख गयी सारी कलियाँ जब, वो मिलने को तरसी
एक संदेशा आया तब, जो था उनकी जुबान में
बहुत दूर अब चली गयी, ना आऊँ नज़र-ए-बान में
यह संदेशा था या था, कोई छोटी चिंगारी
लगा गया जो आग जहाँ, सुख गयी थी क्यारी
फिर मौसम ने ली एक करवट, मंज़र भी फिर बदल गया
वो आयेंगे इन गलियों में यह संदेशा पसर गया
फिर बादल झूम के बरस उठे, बहने लगी पुरवाई
भौरों की गुंजार ने फिर, बंसी मधुर बजाई
लो आ गये वो अमृत बन के, महकाने फूलवारी
गलियों में भी हुआ है उत्सव, त्योहारों की तैयारी
इन नैनों में जो आशु थे, वो बन बैठे हैं मोती
मायूशी अब सरमा के बोली, मोती रह तू मोती ||
...राहुल मिश्रा
Tuesday 27 March 2018
पागल कलम
मेरी कलम भी बस, तेरे अल्फाज़ लिखती है
मेरे जश्बात लिखती है, तेरे अहसास लिखती है
कभी कलियाँ ये लिखती है, कभी गालियाँ ये लिखती है
तेरे चंचल सी वादी में, दिले-ए-गुलज़ार लिखती है
तेरे मोहल्ले से गुज़रती, आँख लिखती है
तेरे अलगाव लिखती है, मेरे बदलाव लिखती है
मेरी आश लिखती है, तेरी तलाश लिखती है
ये पागल कलम तो, तुझे हर बार लिखती है
मेरी कलम भी बस, तेरे अल्फाज़ लिखती है
मेरे जश्बात लिखती है, तेरे अहसास लिखती है
....राहुल मिश्रा
Wednesday 14 March 2018
मेरे घर भी आ जाना
फुर्सत मीले उलझन से तो कभी मेरे घर भी आ जाना
महका देना आँगन को कुछ कलियों को खीला जाना ||1||
आना कुछ ऐसे की सारी गालियाँ सो जाएँ, बेसुध नसे में खो जाएँ
बस एक प्यारी थपकी से, लेकिन तुम मुझे जगा देना
बतला देना जतला देना, लो आई हूँ तेरे घर पे
मुस्का देना कुछ, समझूँ की तुम भी खुश हो
छड़ भर के लिये सही, कुछ सपनों में खो जाऊ
माना के वो पल झुठे हो, सपने कठिन अनूठे हो
बस आ जाना तू आ जाना, मेरे घर भी तू आ जाना ||2||
विनती इतनी बस मेरी है, कुछ अधिक देर मत कर देना
माना तुम भी उलझे हो लकिन मेरी उलझन के सुलझे हो
आखें द्वार निहारेगी, सासें आहट तेरी पहचानेगी
धड़कन की क्या बात कहूँ वो पुरजोर धड़कती जाएँगी
तू आ जाना बस आ जाना , मेरे घर भी तू आ जाना ||3||
फुर्सत मीले उलझन से तो कभी मेरे घर भी आ जाना
महका देना आँगन को कुछ कलियों को खीला जाना...
....राहुल मिश्रा
Friday 9 February 2018
@क्या करें की दिल हमारा मनाता नहीं
क्या करे की दिल हमारा मानता नहीं
अक्ल की तो ये, कुछ जानता नहीं
सरफिरे की शक्ल में ये मासूम है
हसना है इसको कब, रोना कुबूल है |
चलती हवा में गीत की बंसी सी बज गई
जब से दिखें हैं वो गमों की बदली छट गई
हुआ हाल इस कदर की हम जानते नहीं
खिली धुप में खुद को पहचानते नहीं |
झुकता था सर अक्सर उसके मज़ार पे
कुछ ख़्वाब थे मेरे जिनके खुमार में
मांगू क्या अब उस परवरदिगार से
जब सामने दिखता है वो रंगें बिखार के |
क्या करे की दिल हमारा मानता नहीं
अक्ल की तो ये, कुछ जानता नहीं
--- राहुल मिश्रा
Sunday 28 January 2018
दिल के तराने
अँखियाँ मेरी हो गयी ऐसी
तेरी ही रति हो गयी जैसी
पैरों की आहट अब तेरी गति है
सुनते कहा है जब तेरी जमी है
दिल की न पूछो हुआ क्या इसे है
धड़कन बढ़ी है सांसें मनचली है
हाथ का क्या है साथ हैं तेरे
कलम है मेरी शब्द सारे तेरे ||
अँखियाँ मेरी हो गयी ऐसी
तेरी ही रति हो गयी जैसी...
...राहुल मिश्रा
" आखें क्या, जिस्म क्या, सब कुछ भुला दिया
तुझे भूलने की ज़िद में, खुद को मिटा दिया || "
Monday 15 January 2018
चंचल मन
सुनी सुनी इन गलियों में, तू छम छम करके आती है
मन ठहरा सा सुनी पोखर, तू चंचल धारा ले आती है |
मध्मस्त सा मैं एक चंचल भौंरा, तू कली एक बन जाती है
खुशबू महके घर आँगन में, मन मेरा मेहका जाती है |
अचरज से भर जाता मन, जब ये उमंग में नहाता है
शीतल शीतल पुरवाई में, ये गीत अनोखे गाता है |
प्रीत, प्रेम और स्नेह कि, ये सारी दुनिया फुलवारी है
तेरी प्रीत और स्नेह में मन, बन बैठा तेरा पुजारी है |
सुनी सुनी इन गलियों में, तू छम छम करके आती है
मन ठहरा सा सुनी पोखर, तू चंचल धारा ले आती है |
---राहुल मिश्रा
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सत्य सिर्फ़ अंत है
सत्य सिर्फ़ अंत है सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है समय से ...
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मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदार करूँ कह दूँ था जो तेरे दर पर, सब क़िस्सा अल्फ़ाज़ करूँ मंदिर मस्ज़िद उसको पूजा, मैं उसका दीदा...
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तू सामने बैठे मैं फूट के रो लूँ सब कह दूँ, तेरी तकलीफ़ भी सुन लूँ मेरी बेबसी सब उस दिन तू जान जाएगी मेरी खुशियों की वजह तू पहचान...
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धुंध है घनी या अँधेरा घना है मगर एक रोज सवेरा फ़ना है राहें अलग हों चाहे फ़लक हों मिलन की उमीदें हमेशा गगन हों मैं थक भी जाऊ, कदम डगमगाए ...