Tuesday 26 September 2017
Friday 22 September 2017
सुकून-ए-यक़ीनन
एक गुदगुदी सी है मन में, या कोई सुकून है यक़ीनन |
अल्फाज़ नहीं की बयाँ करूँ, मगर एहसास है यक़ीनन ||
दूरियां कैसी भी हों , कितनी भी हो, फ़रक पड़ता नहीं |
दूरियां गर दिल की न हों , तो कोई बेअसर होता नहीं ||
लाख कह लो ज़न्नत देखी नहीं किस्सी ने ,अपनी निगाहों से |
मेहर है बस तेरी की , देखली जन्नत उनकी निगाहों से ||
मुस्कुराने की घड़ियाँ ढूढ़ते हो क्यों , इस छोटी जिंदगानी में |
हर घड़ी में मुस्कुराने की अदा , ढूढ़ लो इस लम्बी कहानी में ||
एक गुदगुदी सी है मन में, या कोई सुकून है यक़ीनन |
-------राहुल मिश्रा
Friday 8 September 2017
पाप पुण्य
पुण्य पाप का लेखा-जोखा ,जिस दिन लिखा जाएगा |
पुण्य होगा जो भी कुछ मेरे ,छोटे मटके में समाएगा ||
पाप एक ही कर बैठा हूँ , जो समंदर में न समाएगा |
बिना इज़ाज़त कर बैठा ,जो इश्क ना भुलाया जाएगा ||
प्रेम पाक है निर्मल मेरा , फिर भी पाप कहलाएगा |
मर्ज़ी नहीं जिसमे तेरी ,वो पाप कहा ही जाएगा ||
बैठा हु अब गंगा तटपर , धुलने को अब पाप सभी |
पाप धुलेगें या याद मिटेगी , जाने तू वो बात सभी ||
पुण्य पाप का लेखा-जोखा ,जिस दिन लिखा जाएगा |
पुण्य होगा जो भी कुछ मेरे ,छोटे मटके में समाएगा ||...
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..राहुल मिश्रा
Monday 4 September 2017
गुरुजनों को समर्पित
समंदर के प्रखर प्रहरी ,बनाने को वे हैं मिलते |
एक छोटी सी आशा के, सहारे वे हमे मिलते ||
ये आशा है उठाने की ,बढ़ाने की , चलाने की |
गगन पर कुछ और तारे लाने की ,खिलने की ||
न कोइ स्वार्थ है इसमें , बस उम्मीद बसती है|
हासिल करते हैं हम ,और उनकी आखें करती हैं ||
फर्ज बनता है ,गुरुओं के लिये यही अपना |
पूरा कर गुजर जाएँ , उनकी आखों का सपना ||
समंदर के प्रखर प्रहरी ,बनाने को वे हैं मिलते |...
.............राहुल मिश्रा
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सत्य सिर्फ़ अंत है
सत्य सिर्फ़ अंत है सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है समय से ...
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