Tuesday 26 September 2017

नन्हा सा बचपन

कल निकला मैं अरसों   के बाद , दशहरे वाले बाज़ार में |
बाज़ार था या था मेला , कौंन पड़े इन बातों  के बवाल  में ||


वो नन्हा सा बच्चा जो छिप गया था कहीं , न जाने कब जाग गया |
यूँ तो हो गए हम ज़वा, पर वो बच्चा खिलोनो के पीछे भाग गया ||


वे मिट्टी की मूर्ति , वे बहुत से गुबारे और न जाने कितने खिलोने |
वह बच्चा थिरकने लगा , नाचने लगा  लौट आए पुराने बचपने ||


वो अल्लढ़ सा बचपन संभल पता ,की फिर  झूले के पीछे भाग गया|
वो थोडा सा डर , थोड़ी सी मस्ती , कुछ गुनगुनाता हुआ मैं जाग गया ||


होड़ लगाये हैं  कुछ पाने की ,कुछ हासिल करने की , क्या कर गुजरने की |
वो खुशहाली , वो मस्ती , ना मिल पायेगी , कुछ मिट्टी के खिलोनों की ||


वक़्त अभी थमा नहीं , मिटा नहीं , अभी कुछ और बचपन बाकि है |
उन बच्चों को  लौटा दो , वो प्यारा बचपन, जिन्हें देखना अभी बाकि है ||


कल निकला मैं अरसों   के बाद , दशहरे वाले बाज़ार में |....


                                                         ...राहुल मिश्रा  

Friday 22 September 2017

सुकून-ए-यक़ीनन

एक गुदगुदी सी है मन में, या कोई सुकून है यक़ीनन |
अल्फाज़ नहीं की बयाँ करूँ, मगर एहसास है यक़ीनन ||


दूरियां कैसी भी हों , कितनी भी हो, फ़रक पड़ता नहीं |
दूरियां गर दिल की न हों , तो कोई बेअसर होता नहीं ||


लाख कह लो ज़न्नत देखी नहीं किस्सी ने ,अपनी निगाहों से |
मेहर है बस तेरी की  , देखली जन्नत उनकी  निगाहों  से ||


मुस्कुराने की घड़ियाँ ढूढ़ते हो क्यों , इस छोटी जिंदगानी में |
हर घड़ी में मुस्कुराने की अदा , ढूढ़ लो इस लम्बी कहानी में ||


एक गुदगुदी सी है मन में, या कोई सुकून है यक़ीनन |


                                                      -------राहुल मिश्रा 


Friday 8 September 2017

पाप पुण्य

पुण्य पाप का लेखा-जोखा ,जिस दिन लिखा जाएगा |
पुण्य होगा जो भी कुछ मेरे ,छोटे मटके में समाएगा ||


पाप एक ही कर बैठा हूँ  , जो समंदर में न समाएगा |
बिना इज़ाज़त कर बैठा ,जो इश्क ना भुलाया जाएगा ||


प्रेम पाक है निर्मल मेरा , फिर भी पाप कहलाएगा |
मर्ज़ी नहीं जिसमे तेरी ,वो पाप कहा ही जाएगा ||


बैठा हु अब गंगा तटपर , धुलने को अब पाप सभी |
पाप धुलेगें या याद मिटेगी , जाने तू वो बात सभी ||


पुण्य पाप का लेखा-जोखा ,जिस दिन लिखा जाएगा |
पुण्य होगा जो भी कुछ मेरे ,छोटे मटके में समाएगा ||...

.                                            
                                                   ..राहुल मिश्रा  






Monday 4 September 2017

गुरुजनों को समर्पित

समंदर के प्रखर प्रहरी ,बनाने को वे हैं मिलते |
एक छोटी सी आशा के, सहारे वे हमे मिलते ||


ये आशा है उठाने की ,बढ़ाने की , चलाने  की |
गगन पर कुछ और तारे लाने  की ,खिलने की ||


न कोइ स्वार्थ है  इसमें , बस  उम्मीद बसती  है|
हासिल करते हैं हम ,और उनकी आखें करती हैं ||


फर्ज बनता है  ,गुरुओं के लिये यही अपना |
पूरा कर गुजर जाएँ , उनकी आखों का सपना ||


समंदर के प्रखर प्रहरी ,बनाने को वे हैं मिलते |...


                                   .............राहुल मिश्रा



सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...