Sunday 28 January 2018

दिल के तराने

अँखियाँ मेरी हो गयी ऐसी
तेरी ही रति हो गयी जैसी 


पैरों की आहट अब तेरी गति है
सुनते कहा है जब तेरी जमी है 


दिल की न पूछो हुआ क्या इसे है
धड़कन बढ़ी है सांसें मनचली है


हाथ का क्या है साथ हैं तेरे
कलम है मेरी शब्द सारे  तेरे ||


अँखियाँ मेरी हो गयी ऐसी
तेरी ही रति हो गयी जैसी...



                  ...राहुल मिश्रा 


" आखें क्या, जिस्म क्या, सब कुछ भुला दिया


तुझे भूलने की ज़िद में, खुद को मिटा दिया ||   "


Monday 15 January 2018

चंचल मन

सुनी सुनी इन गलियों में, तू छम छम करके आती है
मन ठहरा सा सुनी पोखर, तू चंचल धारा ले आती है |


मध्मस्त सा मैं एक चंचल भौंरा, तू कली एक बन जाती है
खुशबू महके घर आँगन में, मन मेरा मेहका जाती है |


अचरज से भर जाता मन, जब ये उमंग में नहाता है
शीतल शीतल पुरवाई में, ये गीत अनोखे गाता है |


प्रीत, प्रेम और स्नेह कि, ये सारी दुनिया फुलवारी है
तेरी प्रीत और स्नेह में मन, बन बैठा तेरा पुजारी है | 


सुनी सुनी इन गलियों में, तू छम छम करके आती है
मन ठहरा सा सुनी पोखर, तू चंचल धारा ले आती है |


                                                ---राहुल मिश्रा


   


सत्य सिर्फ़ अंत है

सत्य सिर्फ़ अंत है  सत्य सिर्फ़ अंत है, बाक़ी सब प्रपंच है, फैलता पाखण्ड है, बढ़ता घमण्ड है, किस बात का गुरुर है, तू किस नशे में चूर है  समय से ...