Monday 21 January 2019

नज़रिया

मेरी जिंदगी वही थी, बस मायने अलग थे
सब रो के जी रहे थे, हम हस  के पी रहे थे
सब रास्ते वही थे, सौ आँधियाँ चली थीं
सब सावन बने थे, मेरी आँख मिटचुकी  थी    


मेरी आँख मेरी कलम बन गयी है
मुस्कान की वज़ह भी कहीं है ?
जो इतनी हसी है, वो इतनी हसीं है
रोने ना  देती, वो ऐसी परी है    

 
हु अकेला सड़क पे, मेले सजे  हैं
फ़रक  पड़ता है क्या, जब दिखता वही है 
मैं रहूँ ना रहूँ, ये दिल के मेले रहेंगे
ये चाहत रहेगी, कुछ अकेले रहेंगे  


             ---राहुल मिश्रा  


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